Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ११
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में चार प्रकार के वाद्य यंत्रों से निकलने वाले मनोज्ञ एवं मधुर शब्दों को कानों से श्रवण करने के प्रयोजन से किसी स्थान में जाने का निषेध किया है। क्योंकि ये शब्द मोह एवं विकार भाव जागृत करने वाले हैं। अतः साधु साध्वी को इन से सदा बच कर रहना चाहिये ।
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चार प्रकार के शब्द कहे गये हैं
१. वितत शब्द - तार रहित बाजों से होने वाला शब्द जैसे-मृदंग, नंदी और झालर आदि के शब्द ।
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२. तत शब्द तार वाले बाजों का शब्द जैसे - वीणा, सारंगी, तुनतुना, तम्बुरा आदि
के शब्द |
४. शुषिर शब्द खरमुही, बिगुल आदि के
३. ताल शब्द - ताली बजने से होने वाला या कांसी, ताल आदि के शब्द । पोल या छिद्र में से निकलने वाले शब्द जैसे - बांसुरी, तुरही, शब्द ।
शब्द चार प्रकार के होने से वाद्य यंत्र भी चार प्रकार के कहे हैं। सभी वाद्य यंत्रों का इन चार भेदों में समावेश हो जाता है ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेइ तंजहा - वप्पाणि वा, फलिहाणि वा जाव सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरषंतियाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाईं कण्णसोयणपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए ॥
कठिन शब्दार्थ - वप्पाणि वप्रा खेत तथा खेत की क्यारियाँ, फलिहाणि - खाइयाँ ।
भावार्थ - साधु या साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं- जैसे कि खेतों में तथा खेत की क्यारियों में तथा खाइयों में होने वाले शब्द यावत् सरोवरों में, समुद्रों में, सरोवर की पंक्तियों में या सरोवर के बाद सरोवर की पंक्तियों के शब्द तथा अन्य इसी प्रकार के विविध शब्दों को कानों से सुनने की दृष्टि से जाने का मन में भी संकल्प न करे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाई सुणेइ तंजहा - कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वणाणि वा, वणदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा,
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