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अध्ययन १५
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गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे, आसाढ सुद्धे तस्स णं आसाढ सुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं। . अर्थ - ग्रीष्म ऋतु का चौथा मास आठवा पक्ष आषाढ सुद छठ। इस मूल पाठ से आगमकार की यह मान्यता स्पष्ट होती है कि महीने का कृष्ण पक्ष (बदपक्ष) पहले आता है और शुक्ल पक्ष (सुद पक्ष) बाद में आता है। परन्तु वर्तमान पञ्चांगकारों की मान्यता इसके विपरीत है वे सुद पक्ष को पहले मानते हैं और बद पक्ष को बाद में, इसीलिए पंचाङ्ग में पूर्णमासी को १५ का अंक लिखते हैं और अमावस्या को ३० का अङ्क लिखते हैं। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि अमावस्या को महीना पूरा हुआ। इसीलिये चैत्र सुदी एकम (प्रतिपदा) को वर्ष का प्रारम्भ करते हैं और चैत्र वदी अमावस्या को वर्ष पूरा करते हैं। विचार करने पर यह विचित्रता मालूम होती है कि चैत्र मास का सुद पक्ष तो पहले पूरा हो गया और चैत्र मास का वद पक्ष ग्यारह मास के बाद आवे यह विचित्रता और विडम्बना नहीं है तो और क्या है? अतः आगमकारों की यह मान्यता कि-महीने का बद पक्ष पहले आता है और सुद पक्ष बाद में आकर महीना पूरा हो जाता है। बीच में किसी प्रकार का अन्तर नहीं पड़ता है। यह मान्यता शुद्ध और सही है। . प्रश्न - कोटाकोटि किसे कहते हैं ?
उत्तर - अर्धमागधी भाषा में 'कोडा-कोडी' शब्द आता है, जिसका संस्कृत में 'कोटी कोटी' अथवा 'कोटाकोटि' शब्द बनता है। हिन्दी में इसको 'करोड़ाकरोड़ी' कहते हैं। कुछ लोग इसको हिन्दी में 'क्रोडाकोड़ी' लिख देते हैं। परन्तु वह शब्द अशुद्ध है।
एक कोटि (करोड़) को एक कोटि (करोड़) से गुणा करने पर एक कोटा कोटि होता है इस प्रकार जितने करोड़ हों उनको एक करोड से ही गुणा करना चाहिए। जैसे कि मोहनीय कर्म की स्थिति ०७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है तो सीत्तर करोड को एक करोड से गुणा करना चाहिए। इसी प्रकार एक काल चक्र बीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम का होता है। यहाँ पर भी बीस करोड़ को एक करोड़ से ही गुणा करना चाहिए। कुछ लोग बीस करोड़ को बीस करोड़ से गुणा करते हैं वह तरीका अशुद्ध है क्योंकि उत्सर्पिणी के दस कोड़ाकोड़ी और अवसर्पिणी के दस कोड़ाकोड़ी इन को अलग-अलग गुणा करने से गुणन फल (२००) दो सौ कोड़ाकोड़ी आता है और इनके आरों को अलग-अलग गुणा करने से गुणन फल साठ (६०) कोड़ाकोड़ी आता है तथा बीस करोड को बीस करोड से गुणा करने पर गुणन फल चार सौ कोड़ाकोड़ी आता है। इस प्रकार गुणनफल में फरक आने से
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