Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 339
________________ ३२६ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध •••••••••••••••••••••reerworterrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror उज्जुवालियाए उत्तरे कूले, सामागस्स गाहावइस्स कट्टकरणंसि वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए सालरुक्खस्स अदूरसामंते उक्कुडुयस्स गोदोहियाए आयावणाए आयावेमाणस्स छटेणं भत्तेणं अपाणएणं उढे जाणू अहोसिरस्स धम्मझाणकोट्ठोवगयस्स सुक्कज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स णिव्वाणे, कसिणे, पडिपुण्णे, अव्वाहए, णिरावरणे, अणंते, केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे॥ . . कठिन शब्दार्थ - उज्जुवालियाए - ऋजु बालिका, उत्तरे कूले - उत्तर तट पर, कट्ठकरणंसि - काष्ठ करण क्षेत्र में, आयावेमाणस्स - आतापना लेते हुए, धम्मज्झाण कोट्ठोवगयस्स - धर्म ध्यान रूपी कोष्ठ में प्रविष्ट हुए, सुक्कज्झाणंतरियाए - शुक्ल ध्यानांतरिका में। भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को इस प्रकार विचरण करते हुए बारह वर्ष व्यतीत हो गए। तेरहवें वर्ष के ग्रीष्म ऋतु के दूसरे मास और चौथे पक्ष में अर्थात् वैशाख सुदी दसमी के दिन सुव्रत नामक दिवस में विजय मुहूर्त में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग आने पर पूर्वगामिनी छाया होने पर-दिन के दूसरे (पिछले) प्रहर में जृम्भक ग्राम नगर के बाहर ऋजुबालिका नदी के उत्तरतट पर, श्यामाक गृहपति के काष्ठकरणक नामक क्षेत्र में वैयावृत्य नामक उद्यान के ईशानकोण में शालवृक्ष से न अति दूर न अति निकट उत्कुटुक और गोदोहासन से सूर्य की आतापना लेते हुए निर्जल बेले के तप से युक्त ऊपर घुटने और नीचे सिर करके धर्मध्यान कोष्ठ में प्रविष्ठ हुए भगवान् जब शुक्लध्यान में लगातार प्रवर्त्तमान थे तभी उन्हें अज्ञान दुःख से निवृत्ति दिलाने वाला सम्पूर्ण प्रतिपूर्ण अव्याहत निरावरण अनन्त अनुत्तर श्रेष्ठ केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भगवान् को केवलज्ञान कब कहाँ किस स्थिति में और किस प्रकार प्राप्त हुआ इसका उल्लेख किया गया है। भगवान् ने चार घनघाती कर्मों के सम्पूर्ण क्षय से केवल ज्ञान, केवलदर्शन को प्राप्त किया। प्रश्न - ध्यानान्तरिका किसको कहते हैं ? उत्तर - एक ध्यान पूरा होकर दूसरे ध्यान को प्रारम्भ करना ध्यानान्तरिका कहलाती है। शुक्ल ध्यान के चार भेद कहे गये हैं यथा - १. पृथकत्व वितर्क सविचारी २. एकत्व वितर्क अविचारी ३. सूक्ष्म क्रिया अनिवर्ती ४. समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाती। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382