Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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____ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध 00000..................rnstor.......................
अर्थ - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पांच इन्द्रियाँ हैं। मन, वचन, और काया तथा श्वासोच्छ्वास और आयुष्य ये दस प्राण हैं। ये दस प्राण भगवान् ने फरमाये हैं। इन प्राणों को जीव से अलग कर देना (अतिपात) प्राणातिपात कहलाता है और इसी को हिंसा कहते हैं।
प्रश्न - किन जीवों के कितने कितने प्राण होते हैं?
उत्तर - एकेन्द्रिय जीवों में चार प्राण होते हैं। यथा - स्पर्शनेन्द्रिय, काया (शरीर), श्वासोच्छ्वास और आयुष्य। बेइन्द्रिय में छह पाण होते हैं यथा चार पूर्वोक्त तथा रसनेन्द्रिय और वचन बल प्राण। तेइन्द्रिय में सात-पूर्वोक्त छह और सातवाँ घ्राणेन्द्रिय। चौरिन्द्रिय में आठ-पूर्वोक्त सात और आठवाँ चक्षुइन्द्रिय। असंज्ञी पंचेन्द्रिय में नौ-पूर्वोक्त आठ और नौवाँ श्रोत्रेन्द्रिय तथा संज्ञी (सन्नी) पंचेन्द्रिय में पूर्वोक्त नौ तथा दसवाँ मन बल प्राण। ये दस .. प्राण होते हैं। ___जिस प्राणी में जितने अधिक प्राण होते हैं उसकी हिंसा में उतना अधिक पाप होता है और उनकी रक्षा में उतना ही धर्म अधिक होता है। ___ प्रश्न - तीर्थङ्कर भगवान् जगत् के सभी प्राणियों की रक्षा रूप दया के लिए धर्मोपदेश फरमाते हैं तो रक्षा किसे कहते हैं और दया किसे कहते हैं?
उत्तर - प्रश्नव्याकरण सूत्र के प्रथम संवर द्वार में अहिंसा भगवती के ६० नाम दिये हैं उनमें रक्षा और दया दोनों शब्द दिये हैं। यद्यपि अर्थ की दृष्टि से दोनों शब्द एकार्थक हैं तथापि शब्द की दृष्टि से भिन्न अर्थ वाले हैं। यथा-कष्ट में पड़े हुए दीन दुःखी जीव को देख कर हृदय का द्रवित (गीला-भीगना-कम्पित) हो जाना दया (अनुकम्पा) है। उस दीन दुःखी जीव को कष्ट से यावत् मृत्यु से बचा लेना रक्षा है। दया, रक्षा दोनों धर्म के अङ्ग हैं। .
प्रश्न - इनको महाव्रत क्यों कहा है?
उत्तर - देश विरति श्रावक के अणुव्रतों की अपेक्षा सर्व विरति साधु मुनिराज के व्रत बड़े हैं। इसलिए इनको 'महाव्रत' कहते हैं। साधु मुनिराज छह काय जीवों की रक्षा करते हैं अतः उनका प्रथम महाव्रत सर्व प्राणातिपात विरमण कहा गया है।
तस्स इमाओ पंच भावणाओ भवंति-तत्थिमा पढमा भावणा, इरियासमिए से णिग्गंथे, णो अणइरिया समिए त्ति, केवली बूया अणइरियासमिए से णिग्गंथे
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