Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भगवान् द्वारा देवों के बाद मनुष्यों को दिये गये उपदेश का वर्णन किया गया है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है- "सव्व जगज्जीव रक्खण दयट्टयाए भगवया पावयणं सुकहियं " - जगत् के सभी प्राणियों की रक्षा रूप दया के लिए तीर्थंकर उपदेश देते हैं। उनका यही उद्देश्य रहता है कि सभी प्राणी साधना के यथार्थ स्वरूप को समझ कर तदनुसार पुरुषार्थ करते हुए अपनी आत्मा का कल्याण करें । इसीलिए वे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना करते हैं। साधना का यथार्थ मार्ग बताते हुए प्रभु ने सर्व प्रथम पांच महाव्रत एवं उसकी पच्चीस भावनाओं तथा छह जीवनिकाय का स्वरूप समझाया ।
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इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति ये तीनों ही एक माता के उदर से जन्मे हुए सगे भाई थे। इनका निवास स्थान गोबर ग्राम था। इनके पिता का नाम वसुभूति और माता का नाम पृथ्वी था, इनका गोत्र गौतम था । दीक्षा के समय इन्द्रभूति की उम्र ५० वर्ष, अग्निभूति की छयालीस वर्ष और वायुभूति की उम्र बयालीस वर्ष की थी।
आगमों में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपने सब से बड़े शिष्य इन्द्रभूति को सम्बोधित करके ही प्रश्नोत्तर किये हैं । इन्द्रभूति अपने नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त न होकर गोत्र से विशेष प्रसिद्धि को प्राप्त हुए थे । इसलिये भगवान् ने भी प्रायः सर्वत्र 'हे गोयम' (हे गौतम) ऐसा ही सम्बोधन दिया है। जहाँ पर अग्निभूति के प्रश्नोत्तर हुए हैं वहाँ 'दोच्चे गोयमे' (द्वितीय गौतम) तथा जहाँ पर वायुभूत्ति के प्रश्नोत्तर हुए हैं वहाँ 'तच्चे गोयमे' (तृतीय गौतम ) ऐसा सम्बोधन दिया है। दूसरे गणधरों के लिये तो उनके नाम से ही सम्बोधित किया गया है। इसीलिए यहाँ मूल पाठ में 'इन्द्रभूति' आदि शब्द न देकर शास्त्रकार ने 'गोयमाईणं' (गौतम आदि गणधरों को) शब्द दिया है।
यहाँ पर भावना शब्द दृढ़ता का सूचक है अतः जिन बातों से महाव्रत पालने में दृढ़ता आवे उन बातों को यहाँ पर 'भावना' शब्द से निर्दिष्ट किया है।
पढमं भंते! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं पाणाइवायं से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा णेव सयं पाणाइवार्य करेजा णेव अण्णं पाणाइवायं कारविज्जा अण्णं पि पाणाइवार्य करतं ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा तस्स भंते! पडिक्कमामि णिंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।
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