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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .0000000000**r.ke...................................... उत्तर - प्राणाः द्वित्रि चतुः प्रोक्ताः, भूतास्तु तरवः स्मृताः।
जीवाः पंचेन्द्रियाः प्रोक्ताः, शेषाः सत्त्वा उदीरिताः॥ .. अर्थ - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव को 'प्राण' कहते हैं। वनस्पतिकाय को 'भूत'। पंचेन्द्रिय को 'जीव' कहते हैं। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय को 'सत्त्व' कहते हैं। जहाँ पर प्राण, भूत, जीव, सत्त्व ये चारों शब्द आते हैं तब उपरोक्त भिन्न-भिन्न अर्थ करना चाहिए। परन्तु जहाँ पर इनमें से एक ही शब्द आवे वहाँ पर एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक सभी जीवों का ग्रहण कर लेना चाहिए। । प्रश्न - 'अभिहणिज्ज' आदि शब्दों का क्या अर्थ है ?
उत्तर - 'अभिहणिज' (अभिहन्यात्) पैर आदि से ताड़ित किया हो 'वत्तिज' (वर्तयेत्) धूल आदि से ढक दिया हो अथवा एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया हो। 'परियाविज' (पीडामुत्पादयेत) परिताप (कष्ट-पीड़ा) उत्पन्न किया हो। 'लेसिज' (श्लेषयेत्) मसला हो। 'उद्दविज' (अपद्रापयेत्) जीवन से रहित किया हो।
प्रश्न - ईर्यासमिति किसे कहते हैं ?
उत्तर - ज्ञान, दर्शन और चारित्र के निमित्त आगमोक्त काल में युग (चार हाथ) परिमाण आगे भूमि को एकाग्र चित्त से देखते हुए राजमार्ग आदि में यतना पूर्वक गमनागमन करना तथा चलते हुए पांच इन्द्रियों को अपने विषय की ओर न जाने देना तथा स्वाध्याय (वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, धर्मकथा, अनुप्रेक्षा) भी न करना किन्तु चित्त को एकाग्र रखते हुए चलना ईर्या समिति कहलाती है। ___ अहावरा दोच्चा भावणा-मणं परिजाणाइ से णिग्गंथे जे य मणे पावए सावजे सकिरिए अण्हयकरे छेयकरे भेयकरे अहिगरणिए पाउसिए परियाविए पाणाइवाइए भूओवघाइए तहप्पगारं मणं णो पधारिजा, मणं परिजाणाइ से णिग्गंथे जे य मणे अपावए त्ति दोच्चा भावणा॥२॥
कठिन शब्दार्थ - सकिरिए - पापकारी क्रिया करने वाला, अण्हयकरे - आस्रवकारक, आस्रव करने वाला, अहिगरणिए - कलह करने वाला, पाउसिए - द्वेष करने वाला, भूओवघाइए - भूतोपघातिक, पधारिज्जा - धारण करे, अपावए - पाप से रहित, परियाविएपरिताप उत्पन्न करने वाला, पाणाइवाइए - प्राणातिपात (जीव हिंसा करने वाला)। .
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