Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १५
३३५
भावार्थ - हे भगवन् ! मैं प्रथम महाव्रत में सम्पूर्ण प्राणातिपात का त्याग करता हूँ। मैं सूक्ष्म, बादर और त्रस स्थावर समस्त जीवों का न तो स्वयं प्राणातिपात (हिंसा) करूँगा, न दूसरों से कराऊँगा और प्राणातिपात करने वालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा इस प्रकार मैं यावजीवन के लिए तीन करण तीन योगों (मन, वचन, काया) से इस पाप से निवृत्त होता हूँ। हे भगवन् ! मैं उस पूर्वकृत पाप का प्रतिक्रमण करता हूँ, आत्म साक्षी से निन्दा करता हूँ गुरु साक्षी से गर्दा करता हूँ और अपनी आत्मा को हिंसा के पाप से पृथक् करता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रथम महाव्रत सर्व प्राणातिपात विरमण का वर्णन किया गया है।
पहले महाव्रत में सर्व प्राणातिपात से निवृत्ति होती है। इसमें सूक्ष्म, बादर, त्रस और स्थावर ये चार शब्द दिये हैं। यहाँ पर सूक्ष्म नाम कर्म के उदय से जो जीव सूक्ष्म हैं वे नहीं लिये गये हैं। इसी प्रकार त्रस नाम कर्म के उदय वाले त्रस जीव नहीं लिये गये हैं। किन्तु अपेक्षाकृत सूक्ष्म (छोटा) और बादर (बड़ा) लिया गया है। इसलिए स्थावर के दो भेद हैं। यथा-सूक्ष्म स्थावर वनस्पति और बादर स्थावर पृथ्वीकाय आदि चार स्थावर। इसी प्रकार त्रस के भी दो भेद हैं - सूक्ष्म त्रस कुंथुआ आदि और बादर त्रस हाथी घोडा गाय बैल आदि। यहाँ ऐसा अर्थ लेना चाहिये। क्योंकि सूक्ष्म नाम कर्म के उदय वाले सूक्ष्म जीव तो मारने से मरते ही नहीं है।
प्रश्न - जीव अजर अमर है। वह कभी मरता नहीं और जन्म लेता नहीं फिर उसकी हिंसा कैसे हो सकती है? ____ उत्तर - हाँ! यह बात ठीक है कि जीव अजर अमर है। इसलिए उसकी हिंसा नहीं होतीं। अतएव यहाँ मूलपाठ में हिंसा शब्द नहीं देकर 'पाणाइवाय' (प्राणातिपात) शब्द दिया है।
प्रश्न - प्राणातिपात किसको कहते हैं?
उत्तर - आगम में प्राण शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है- 'प्राणिति (जीवति) इति प्राणः।' जिसके सहारे जीव जीवित रहता है उनको प्राण कहते हैं। उन प्राणों को शरीर से अलग कर देना प्राणातिपात कहलाता है।
प्रश्न - प्राण कितने हैं? उत्तर - पंचेन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च, उच्छ्वास निःश्वास मथान्यदायुः।
प्राणाः दशैते भगवद्भिरुक्ताः, तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा॥
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