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अध्ययन १५
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श्रमण भगवान् महावीर स्वामी शुक्ल ध्यान के पहला भेद का जब ध्यान कर रहे थे और दूसरे को प्रारम्भ करने की तैयारी थी उस समय अर्थात् तेरहवें गुणस्थान में पदार्पण करते ही उन्हें केवलज्ञान केवलदर्शन की प्राप्ति हुई।
प्रश्न - कर्म कितने हैं ?
उत्तर - कर्म आठ हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. ज्ञानावरणीय २. दर्शनावरणीय ३. वेदनीय ४. मोहनीय ५. आयुष्य ६. नाम ७. गोत्र ८. अन्तराय।
प्रश्न - इन आठ कर्मो में घाती कर्म कितने हैं और उन्हें घाती क्यों कहते हैं ?
उत्तर - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय ये चार घाती कर्म हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य ये चार आत्मा के मुख्य गुण हैं। इन मुख्य गुणों का घात इन चार कर्मों से होता है इसलिए इनको घाती कर्म कहते हैं। कहीं कहीं इनको घन घाती कर्म भी कहा है। ज्ञानावरणीय कर्म केवलज्ञान का घात करता है और दर्शनावरणीय केवल दर्शन का, मोहनीय यथाख्यात चारित्र का तथा अन्तराय वीर्य का घात करता है। .
प्रश्न - अघाती कर्म किसको कहते हैं ? और वे कौनसे हैं ?
उत्तर - वेदनीय, आयुष्य नाम व गोत्र, ये चार अघाती कर्म हैं। ये आत्मा के मुख्य गुणों का घात नहीं करते हैं इसलिए इन्हें अघाती कर्म कहते हैं।
प्रश्न - घाती कर्मों का नाश होने से किस गुण की प्राप्ति होती है? उत्तर - घाती कर्मों का सर्वथा क्षय होने पर केवलज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति
होती है।
___ प्रश्न - एक जीव में कम से कम और ज्यादा से ज्यादा कितने ज्ञान एक साथ पाये
जा सकते हैं? ___उत्तर - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यव ज्ञान ये चार ज्ञान क्षायोपशमिक ज्ञान हैं इसलिए एक जीव में एक साथ रह सकते हैं अर्थात् एक जीव में ज्यादा से ज्यादा ये चार ज्ञान एक साथ रह सकते हैं। केवलज्ञान क्षायिक ज्ञान है इसलिए जब केवलज्ञान रहता है तब ये चार ज्ञान नहीं रहते हैं सर्वथा नष्ट हो जाते हैं इसलिए एक जीव में एक साथ कम से एक ज्ञान रहता है जैसा कि कहा है -
'णम्मि य छाउमथिए णाणे' .
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