Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १५
३३१
उत्तर - दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है कि तीर्थङ्कर भगवान् की अव्यक्त ध्वनि होती है यही उनका धर्मोपदेश है किन्तु श्वेताम्बर जैनों की मान्यता है कि तीर्थंकर भगवान् भाषा वर्गणा के पुद्गल लेकर वचन रूप से उनका नि:सरण करते हैं अर्थात् स्पष्ट रूप से शब्द उच्चारण करते हैं। इसी बात को स्पष्ट करने के लिए आगम में ये शब्द आये हैं यथा - आइक्खइ, भासइ, पण्णवेइ, परूवेइ। जिनका अर्थ है - स्पष्ट उच्चारण करना।
प्रश्न - प्रथम देशना खाली जाने के बाद भगवान् ने क्या किया?
उत्तर - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी जृम्भिका ग्राम से विहार कर मध्यम अपापानगरी पधारे। इस नगरी के सोमिल नामक धनाढ्य ब्राह्मण ने एक महायज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ को सम्पन्न करवाने के लिए उसने अपने समय के वेदों के पारगामी महान् विद्वान ऐसे ग्यारह ब्राह्मण उपाध्यायों को आमंत्रित किया था। उनके नाम इस प्रकार हैं -
१. इन्द्रभूति २. अग्निभूति ३. वायुभूति ४. व्यक्त ५. सुधर्मा ६. मण्डीपुत्र ७. मौर्यपुत्र ८. अकम्पित ९. अचलभ्राता १०. मेतार्य ११. प्रभास। - इन सब के मन में एक-एक शङ्का थी। ये भगवान् से चर्चा करने के लिये आये। भगवान् ने उनकी शङ्का का समाधान कर दिया तब ग्यारह ही ब्राह्मण पण्डित अपने शिष्यों सहित भगवान् के पास दीक्षित हो गये। इनके ४४०० शिष्य थे। इस प्रकार एक ही दिन में ४४११ पुरुषों की एवं कुछ महिलाओं की दीक्षा हुई इनमें से इन्द्रभूति आदि को गणधर पद.
मिला।
__ (नोट - भगवान् ने दूसरी देशना में चतुर्विध संघ की स्थापना की। अत: उसी दिन साध्वियों का संघ भी बना था। आगमों में कम से कम तीन साध्वियों के बिना उनका रहना नहीं बताया है। इन आगम पाठों के अनुसार पूज्य बहुश्रुत गुरुदेव फरमाया करते थे कि भगवान् महावीर प्रभु की दूसरी देशना में चन्दनबाला आदि कम से कम तीन महिलाओं की दीक्षा तो होने की ही संभावना है। इससे अधिक महिलाओं की भी दीक्षा हुई हो तो बाधा नहीं है। कम से कम तीन महिलाओं की दीक्षा को उपर्युक्त संख्या के साथ जोड़ने पर "४४१४" की संख्या होने की संभावना है। अधिक होने में बाधा नहीं है।)
इसके बाद भगवान् ने उनको भावना सहित पांच महाव्रतों का स्वरूप समझाया जिस का वर्णन आगमकार ने आगे इस प्रकार किया है। ..
जण्णं दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स णिव्वाणे कसिणे जाव
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