Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ..........................................•••••••••••••
२. सम्म खमिस्सामि - 'क्रोधादि अभावेन सम्यक् क्षमिष्ये।'
अर्थ - उपसर्ग देने वाले पर क्रोध आदि न करते हुए उसे क्षमा प्रदान करते हुए सम्यक् प्रकार से सहन कर लूँगा।
३. सम्म तितिक्खिस्सामि - 'अदीन भावेन सम्यक् तितिक्षिष्ये।'
अर्थ - किसी प्रकार की दीनता हीनता बताये बिना उन आने वाले उपसर्गों को शूर वीरता पूर्वक सहन कर लूँगा।
४. सम्म अहियासइस्सामि - 'निर्जरा भावनया' सम्यक् अध्यासिष्ये। .
अर्थ - उपसर्ग आने पर उपसर्ग देने वाले पर किसी प्रकार का अशुभ विचार नहीं करूँगा। बल्कि यह समझूगा कि मेरे कर्मों की निर्जरा हो रही है। मेरे कर्मों की निर्जरा कराने में यह उपसर्ग दाता तो निमित्त बन रहा है इसलिए यह मेरा मित्र है, ऐसा समझ कर आने वाले उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करूँगा।
तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता वोसट्टकाए चत्तदेहे दिवसे मुहुत्तसेसे कुम्मारगाम समणुपत्ते॥
भावार्थ - इस प्रकार अभिग्रह धारण करने के बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी काया का व्युत्सर्ग एवं काया के ममत्व का त्याग करके ज्ञातखण्ड उद्यान से विहार किया और दिन का मुहूर्त शेष रहते कुमारग्राम पहुँचे।
विवेचन - भगवान् ने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की उसी दिन विहार करके सूर्यास्त से एक मुहूर्त (४८ मिनिट) पूर्व कुमारग्राम पहुँच गए।
तओ णं समणे भगवं महावीरे वोसट्टचत्तदेहे अणुत्तरेणं आलएणं, अणुत्तरेणं विहारेणं, एवं संजमेणं, पग्गहेणं, संवरेणं, तवेणं, बंभचेरवासेणं, खंतीए, मुत्तीए, समिईए, गुत्तीए, तुट्टीए, ठाणेणं, कम्मेणं सुचरियफलणिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥
कठिन शब्दार्थ - आलएणं - वसति अर्थात् निर्दोष स्थान के सेवन से, पग्गहेणं - प्रग्रहेण-प्रयत्न से, तुट्ठीए - तुष्टि से, ठाणेणं - कायोत्सर्गादि स्थान से, कम्मेणं - क्रियानुष्ठान से, सुचरियफलणिव्वाणमुत्तिमग्गेणं - सुचरितफल निर्वाण मुक्ति मार्ग से।
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