Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .................mor.orrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr...... पुनः मंगल बाजे बजने लगे और मंगलाचार होने लगा। गर्भस्थ जीवन ने अपने ऊपर माता. के पिता के मोह की प्रबलता देखकर यह अभिग्रह किया कि "जब तक मेरे माता-पिता जीवित रहेंगे मैं दीक्षा नहीं लूँगा।" वह प्रतिज्ञा अब पूरी हो चुकी थी क्योंकि माता-पिता दोनों स्वर्गवासी हो चुके थे। इसलिए उन्होंने अब दीक्षा लेने का विचार किया।
संवच्छरेण होहिइ अभिणिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स। तो अत्थसंपयाणं पव्वत्तइ पुव्वसूराओ॥१॥ एगा हिरण्णकोडी, अद्वैव अणूणया सयसहस्सा। सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायारासोत्ति॥२॥ तिण्णेव य कोडिसया अट्ठासीइंच होंति कोडीओ। . असिइंच सयसहस्सा, एवं संवच्छरे दिण्णं॥३॥
कठिन शब्दार्थ - संवच्छरेणं - एक संवत्सर (वर्ष) से, जिणवरिदस्स - जिनवरेन्द्र देव का, अत्थसंपयाणं - अर्थ संपदा, पुव्वसूराओ - पूर्व दिशा में सूर्य उदय होने से, अणूणगा - अन्यूनका-सम्पूर्ण, सूरोदयमाईयं - सूर्योदय से लेकर, पायरासु - प्रातराश-एक प्रहर तक, कोडिसया - सौ करोड़, असिई - अस्सी। ___ भावार्थ - जिनवरेन्द्र देव का अभिनिष्क्रमण एक वर्ष पूर्ण होने पर होगा अतः वे दीक्षा लेने से एक वर्ष पूर्व सांवत्सरिक-वर्षी दान देना प्रारंभ कर देते हैं। प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर एक प्रहर दिन चढ़ने तक उनके द्वारा अर्थ का-धन का दान दिया जाता है।
प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर एक प्रहर पर्यन्त (तक) एक करोड़ आठ लाख स्वर्णमुद्राओं का दान दिया जाता है। ___इस प्रकार भगवान् ने एक वर्ष में कुल तीन अरब, अठासी करोड़,
अस्सी लाख (३, ८८, ८०, ०००००) स्वर्णमुद्राओं का दान दिया। • विवेचन - प्रत्येक तीर्थंकर भगवान् दीक्षा ग्रहण करने से एक वर्ष पूर्व तक प्रतिदिन एक करोड़ आठ लाख स्वर्णमुद्राओं का दान करते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में कुल तीन अरब, अठासी करोड, अस्सी लाख (३, ८८, ८०, ०००००) स्वर्ण मुद्राओं का दान देते हैं।
तीर्थंकरों के इस दान से यह स्पष्ट होता है कि केवल साधु-साध्वी को दिया जाने वाला आहार, पानी, वस्त्र, पात्र आदि का दान ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि अनुकम्पा दान भी अपना
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