Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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एए देवणिकाया भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं ॥ सव्वजगज्जीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि ॥
कठिन शब्दार्थ - वेसमणकुंडलधरा - कुण्डल धारण करने वाले वैश्रमण देव, लोगंतिया लोकान्तिक, बोर्हिति प्रतिबोधित करते हैं, कप्पंमि - कल्प में, कण्हराइणोकृष्ण राजि के, वत्था - विस्तार, सव्वजगज्जीवहियं - सर्व जगत् के जीवों के हितकारी । भावार्थ कुण्डलधारी वैश्रमण देव और महान् ऋद्धिसंपन्न लोकान्तिक देव पन्द्रह कर्मभूमियों में उत्पन्न होने वाले तीर्थंकर भगवान् को प्रतिबोधित करते हैं।
ब्रह्मलोक कल्प में आठ कृष्णराजियों के मध्य में आठ प्रकार के लोकान्तिक विमान असंख्यात विस्तार वाले जानने चाहिये ।
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
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यह सब देव निकाय (देवों का समूह) भगवान् को बोधित करते हैं (सविनय निवेदन करते हैं) कि हे अर्हन् देव ! सर्व जगत् के जीवों के लिये हितकर धर्मतीर्थ की स्थापना कीजिए ।
विवेचन लोकान्तिक देवों का पांचवें ब्रह्मलोक देवलोक में निवास है अन्य कल्पों में नहीं । ब्रह्मलोक को घेर कर आठ दिशाओं में आठ प्रकार के लोकान्तिक देव रहते हैं। तत्त्वार्थ सूत्र में आठ लोकान्तिक देवों के नाम इस प्रकार गिनाये हैं -
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"सारस्वताऽदित्य- वन्हयरुण-गर्दतोय- तुषिताऽव्याबाध मरुतोऽरिष्टश्च "
यदि वह्नि और अरुण को अलग अलग मानें तो इनकी संख्या नौ हो जाती है। ८ कृष्णराजियाँ हैं, दो दो कृष्णराजियों के मध्य भाग में ये रहते हैं। मध्य में अरिष्ट नामक देव रहते हैं। इस प्रकार ये ९ भेद होते हैं। लोकान्तवर्ती ये ८ भेद ही होते हैं नौवां भेद रिष्ट विमान प्रतरवर्ती होने से होता है, इसलिये कोई दोष नहीं है। स्थानाङ्ग सूत्र के नववे ठाणे में लोकान्तिक देवों के ९ भेद ही बताए गये हैं। यहां जो आठ भेद बतलाएं हैं वे आठ कृष्णराजियों की अपेक्षा से समझने चाहिये ।
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यहां ब्रह्मलोकवासी लोकान्तिक देवों द्वारा तीर्थंकर को प्रतिबोधित करने का अर्थ है सविनय निवेदन करना। क्योंकि तीर्थङ्कर भगवान् ती स्वयंबुद्ध होते हैं उन्हें बोध देने की आवश्यकता नहीं होती है। जब तीर्थंकर भगवान् के हृदय में दीक्षा लेने की भावना पैदा होती है तब लोकान्तिक देव अपनी परम्परा के अनुसार ( जीताचार का पालन करने के लिये) आकर उन्हें धर्म तीर्थ की स्थापना करने के लिये सविनय निवेदन करते हैं।
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