Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
विवेचन - तार से बजने वाले वादय के शब्दों को तत कहते हैं। ऐसे वाद्यों के शब्दों को सुनने के लिए अपने स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान पर कहीं भी जावे नहीं, यहाँ तक कि वहाँ जाने का मन से संकल्प भी न करे । किन्तु अनायास ऐसे शब्द कान में पड़ जाय वे तो रोके नहीं जा सकते हैं किन्तु उन पर राग-द्वेष की परिणिती नहीं होने देनी चाहिए । ऊपर जो वादय के नाम बताये गये हैं उनमें से कितने ही प्रसिद्ध हैं और कितने ही अप्रसिद्ध हैं।
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सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाई सुणेइ तंजहा - तालसद्दाणि वा, कंसतालसद्दाणि वा, लत्तियसद्दाणि वा, गोहियसद्दाणि वा किरिकिरियसद्दाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं तालसद्दाई कण्णसोयणपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए ।
कठिन शब्दार्थ - कंसतालसद्दाणि - कांसे का शब्द ।
भावार्थ - साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे कि ताल के शब्द, कंसताल के शब्द, लत्तिका (कांसी) के शब्द, गोधिका (कांख और हाथ में रख कर बजाया जाने वाला 'वाद्य विशेष) के शब्द, किरिकिरि (बांस की छडी से बजने वाले वाद्य) के शब्द, इसी प्रकार के अन्य ताल शब्दों को सुनने के लिये किसी स्थान में जाने का मन से भी संकल्प नहीं करे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेइ तंजहा - संखसद्दाणि वा, वेणुसद्दाणि वा, वंससद्दाणि वा, खरमुहीसद्दाणि वा, पिरिपिरियसद्दाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाई सद्दाई झुसिराई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए ॥ १६८ ॥
कठिन शब्दार्थ - पिरिपिरियसद्दाणि पिरिपिरिका (बांस आदि की नाली से बजने वाले वाद्य विशेष) के शब्द अथवा पिपुडी के शब्द, झुसिराई - शुषिर - पोलार वाले वाद्य विशेष |
भावार्थ-साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे कि शंख के शब्द, वेणु के शब्द, बांस के शब्द, खरमुखी के शब्द, पिरिपिरिका के शब्द या इसी प्रकार के शुषिर शब्दों को कानों से सुनने की दृष्टि से किसी स्थान में जाने का मन से भी संकल्प न करे ।
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