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__ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.............. .
विवेचन - जम्बूद्वीप पण्णत्ति सूत्र के सातवें वक्षस्कार में ज्योतिष शास्त्र में २८ नक्षत्र माने गये हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशीर्ष, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती।
समवायाङ्ग सूत्र के सत्तावीसवें समवाय में बतलाया गया है कि अभिजित नक्षत्र को छोड़कर सत्तावीस नक्षत्रों से व्यवहार होता है। ज्योतिष शास्त्र अर्थात् पंचाङ्ग में सत्तावीस नक्षत्र ही माने गये हैं। अभिजित् नक्षत्र के कुछ अंश को उत्तराषाढा में तथा कुछ अंश को श्रवण में समाविष्ट कर दिया गया है।
तीर्थङ्कर भगवन्तों का जन्म जब नक्षत्र उच्च स्थिति में होते हैं उसी समय होता है। इसी प्रकार देवलोक से च्यवना (देवलोक से च्यव कर गर्भ में आना) जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान
और निर्वाण (मोक्ष) भी होता है। यहाँ पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की पांच बातों के लिये मूल में शब्द दिया है 'हत्थुत्तरे'। जिसका अर्थ टीकाकार ने इस तरह दिया है - .. "हस्त उत्तरो यासाम् उत्तरफाल्गुनीनां ता हस्तोत्तराः" .
अर्थ - जिस नक्षत्र के बाद हस्त नक्षत्र आता है वह नक्षत्र यहाँ लिया गया है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के बाद में हस्त नक्षत्र आता है इसलिये उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र यहाँ लिया गया है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की पांच बातें उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुई थी। इन पांच बातों में गर्भ संहरण को भी शामिल लिया गया है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी बीस सागरोपम की स्थिति भोग कर दसवें देवलोक से च्यव कर ब्राह्मण कुण्डनगर के ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा के गर्भ में आये थे। उस समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र था, इसको च्यवन कल्याणक कहते हैं। तीर्थंकरों का जन्म क्षत्रिय वंश राजकुल में ही होता है इसलिए शक्रेन्द्र की आज्ञा से उनके पदाति अनीकाधिपति हरिनैगमषी देव द्वारा देवानन्दा की कुक्षि से भगवान् के जीव का संहरण करके क्षत्रियकुण्डग्राम के महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला की कुक्षि में रखा था इसको गर्भ संहरण कहते हैं। यदि गर्भ संहरण को भी कल्याणक माना जाय तो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के छह कल्याणक होते हैं। यदि इसको कल्याणक न माना जाय तो पांन कल्याणक होते हैं। सामान्यतया सभी तीर्थंकरों
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