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तृतीय चूला
भावना नामक पन्द्रहवां अध्ययन प्रस्तुत भावना नामक पन्द्रहवें अध्ययन में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जन्म एवं जीवन चर्या का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा स्वीकृत-उपदिष्ट पांच महाव्रत की पच्चीस भावनाओं का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन का महत्त्व भगवान् के दिव्य जीवन की अलौकिकता का दिग्दर्शन कराते हुए उनके साधना मय जीवन से प्रेरणा प्राप्त करने का है।
अतः आगमकार फरमाते हैं - .. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था, तंजहा - हत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्भं वक्कंते, हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए हत्थुत्तराहिं जाए, हत्थुत्तराहिं सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, हत्थुत्तराहिँ कसिणे पडिपुण्णे अव्वाघाए णिरावरणे अणंते अणुसरे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे, साइणा भगवं परिणिव्युए॥१७५॥
कठिन शब्दार्थ - पंच - पांच, हत्थुत्तरे - हस्तोत्तर-उत्तराफाल्गुनी, चुए - च्युत, साहरिए - संहरण हुआ, अणंते - अनन्त, अणुत्तरे - अनुत्तर-प्रधान, अव्याघाए - निर्व्याघात, जिसमें रुकावट न पड़े, णिरावरणे - निरावरण-आवरण रहित, कसिणे - कृत्स्न-संपूर्ण, साइणा - स्वाति नक्षत्र, परिणिव्वुए - परिनिर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुए। - भावार्थ - उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। यथा-भगवान् का उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यवन हुआ, च्यव कर वे गर्भ में उत्पन्न हुए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से गर्भान्तर में संहरण किये गये। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही भगवान् का जन्म हुआ। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही सब ओर से सर्वथा मुण्डित होकर अगार (गृह) का त्याग कर अनगार धर्म में प्रवजित हुए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् को संपूर्ण प्रतिपूर्ण, निर्व्याघात (जिसमें पर्वत आदि किसी की रुकावट न हो) निरावरण (आवरण रहित) अनन्त और अनुत्तर श्रेष्ठ केवलज्ञान केवलदर्शन समुत्पन्न हुआ और स्वाति नक्षत्र में भगवान् परिनिर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुए।
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