Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
विभूसियाणि वा, गांयंताणि वा, वायंताणि वा, णच्चंताणि वा, हसंताणि वा, रमंताणि वा, मोहंताणि वा, विउलं असणपाणखाइमसाइमं परिभुंटुताणि वा, परिभाइंताणि वा, विच्छड्डियमाणाणि वा, विगोवयमाणाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महुस्सवाइं कण्णसोयणपडियाए णो अभिसंधारिजा गमणाए॥
कठिन शब्दार्थ - महुस्सवाई - महोत्सव, थेराणि - वृद्ध, डहराणि - बालक, मज्झिमाणि - मध्यम वय वाले-युवक, आभरण विभूसियाणि - आभरणों से विभूषित किये हुए, वायंताणि - बजाते हुए, रमंताणि - क्रीडा करते हुए, मोहंताणि - रति क्रीडा करते हुए, परिभाइंताणि - विभाग या वितीर्ण करते हुए, विच्छड्डियमाणाणि - अलग करते हुए, त्यागते हुए, विगोवयमाणाणि - तिरस्कार करते हुए।
भावार्थ - साधु या साध्वी नाना प्रकार के महोत्सवों को इस प्रकार जाने कि जहाँ स्त्रियाँ, पुरुष, वृद्ध, बालक और युवक अभूषणों से विभूषित होकर गीत गाते हों, वाद्य बजाते हों, नाचते हों, हंसते हों खेलते हों, रतिक्रीड़ा करते हों तथा विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों का उपभोग करते हों, परस्पर बांटते हों या परोसते हों, त्याग करते हों या तिरस्कार करते हों, उनके शब्दों को तथा इसी प्रकार के अन्य विविध महोत्सवों के शब्दों को कान से सुनने के प्रयोजन से वहाँ जाने का मन में भी संकल्प न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो इहलोइएहिं सद्देहिं, णो परलोइएहिं सद्देहि, णो सुएहिं सद्देहि, णो असुएहिं सद्देहि, णो दिटेहिं सद्देहिं, णो अदिटेहिं सद्देहिं, णो कंतेहिं सद्देहिं सजिजा णो रजिजा, णो गिज्झिजा, णो मुज्झिजा, णो अज्झोववज्जिजा॥
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव जइज्जासि त्ति बेमि॥१७॥
॥सह सतिक्कओ संमत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - इहलोइएहिं - इहलौकिक-मनुष्यादि कृत, पारलोइएहिं - पारलौकिकहाथी घोड़ा आदि, सद्देहिं - शब्दों को, सुएहिं - श्रुत-सुने हुए, दिटेहिं - दृष्ट देखे हुए,
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