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अध्ययन १३
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कठिन शब्दार्थ - परकिरियं - परक्रिया, अज्झत्थियं - आध्यात्मिकी, संसेइयं - कर्म-संश्लेषकारिणी, आमजिज्ज - एक बार पोंछे, पमज्जिज - बार बार पोंछे, संवाहिजदबाए, मालिश करे, पलिमद्दिज - विशेष रूप से दबाए, फुसिज - स्पर्श करे, रएज - रंगे, मक्खिज - चुपडे, भिलिंगिज - मालिश-मर्दन करे, उल्लोढिज - उबटन करे, उव्वलिज - लेपन करे। .
भावार्थ - १. "पर" अर्थात् गृहस्थ के द्वारा आध्यात्मिकी अर्थात् साधु साध्वी के शरीर पर की जाने वाली काय व्यापार रूप क्रिया कर्म बंधन का कारण है अतः साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन और काया से उसे कराए।
२. कदाचित् कोई गृहस्थ पुरुष और स्त्री साधु साध्वी के पैरों को वस्त्रादि से पोंछे अथवा बार-बार पोंछ कर साफ करे तो साधु साध्वी उस क्रिया को मन से भी न चाहे तथा वचन और काया से भी न कराए।
३. कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों को मर्दन करे या दबाए तथा बार-बार मर्दन करे या दबाए तो साधु साध्वी उसकी मन से भी इच्छा न करे, न वचन और काया से कराए।
४. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों को फूंक मारने हेतु स्पर्श करे तथा रंगे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से भी नहीं कराए।
५. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों को तेल, घी या चर्बी से चुपडे, मसले तथा मालिश करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे तथा वचन और काया से न कराए।
६. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों को लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण से उबटन करे या लेप करे तो साधु साध्वी मन से भी न चाहे तथा वचन और काया से भी नहीं कराए। ____७. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों को प्रासुक शीतल. जल से या उष्णजल से धोए अथवा अच्छी तरह से धोए तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे, न वचन और न काया से कराए।
८. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों का इसी प्रकार के किन्हीं अन्य विलेपन द्रव्यों से एक बार या बार-बार आलेपन विलेपन करे तो साधु साध्वी उसमें मन से भी रुचि न ले और न ही वचन और काया से उसे कराए। - ९. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों को सुगन्धित पदार्थ के धूप से धूपित करे या प्रधूपित करे तो उसे मन से न चाहे, न ही वचन और काया से उसे कराए।
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