Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अध्ययन १३
२७७
३. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण के ऊपर तेल, घी, नवनीत या वसा चुपडे, मसले या मर्दन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से कराए। .. ४. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण पर लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण आदि विलेपनों से आलेपन विलेपन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से कराए। '
५. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण को प्रासुक ठंडे जल से या गर्म जल से एक बार धोए या बार-बार धोए तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही उसे वचन एवं काया से कराए। ... ६. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुये व्रण (घाव-फोडे) को किसी एक प्रकार के या विविध प्रकार के विलेपनों से आलेपन या विलेपन करे तो साध साध्वी मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए। ___७. यदि कोई गृहस्थ साधु-साध्वी के शरीर पर हुए व्रण को किसी सुगन्धित पदार्थ से एक बार धूपित करे या बार-बार धूपित करे तो साधु साध्वी मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराये।
८. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण को किसी प्रकार के शस्त्र विशेष से छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और वचन एवं काया से भी न कराए। . ९. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण को शस्त्र विशेष द्वारा छेदन करके या विशेष रूप से छेदन करके उसमें से मवाद या रक्त निकाले तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और वचन एवं काया से भी न कराए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गृहस्थ पुरुष या स्त्री द्वारा साधु या साध्वी के शरीर पर हुए घाव के परिकर्म (सेवा) कराने का निषेध किया गया है। - १. सिया से परो कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पुलइयं वा, भगंदलं वा, आमजिज्ज वा, पमजिज्ज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org