Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 294
________________ अध्ययन १३ २८१ •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••................ सिया से परो अंकंसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावित्ता पायाई आमज्जिज्ज वा पमजिज्ज वा एवं हिद्विमो गमो पायाइ भाणियव्वो, सिया से परो अंकंसि वा पलियंकंसि वा तुयट्टावित्ता, हारं वा अद्धहारं वा उरत्थं वा, गेवेयं वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्ण-सुत्तं वा, आविहिज्ज वा पिणहिज्ज वा णो तं सायए णो तं णियमे॥ __कठिन शब्दार्थ - अंकंसि - गोद में, पलियंकंसि - पलंग पर, तुयट्टावित्ता - लिटा कर या बिठा कर, उरत्थं - वक्ष स्थल पर पहने जाने वाले आभूषण।। भावार्थ - कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी को अपनी गोद में या पलंग पर लिटा कर उसके पैरों को एक बार या बार बार पोंछे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए। इसके बाद पैरों से संबंधित जो पूर्वोक्त पाठ कहा गया है, वह सब पाठ यहाँ भी कहना चाहिए। कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी को अपनी गोद में या पलंग पर लिटा कर उसको हार (अठारह लड़ी वाला) अर्द्धहार (नौ लड़ी वाला), वक्ष स्थल पर पहनने योग्य आभूषण, गले का आभूषण, मुकुट, लम्बी माला, सुवर्ण सूत्र बांधे या पहनाए तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन और काया से कराए। सिया से परो आरामंसि वा उजाणंसि वा णीहरित्ता वा पविसित्ता वा पायाई आमजिज वा पमजिज्ज वा णो तं सायए णो तं णियमे एवं णेयव्वा अण्णमएणकिरिया वि॥१७२॥ कठिन शब्दार्थ - अण्णमण्ण किरिया - अन्योन्य क्रिया। भावार्थ - कदाचित् कोई गृहस्थ साधु को आराम या उद्यान में ले जा कर या प्रवेश करा कर उनके पैरों को एक बार या बार-बार पोंछ कर साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए। इस प्रकार जो पैरों से सम्बन्धित वर्णन पूर्व में कहा गया है वैसा पाठ और यहाँ पर भी कह देना चाहिए। .. इसी प्रकार साधुओं और साध्वियों की अन्योन्य क्रिया-पारस्परिक क्रियाओं के विषय में भी समझ लेना चाहिये। अर्थात् साधु साध्वी परस्पर भी पूर्वोक्त क्रियाओं का आचरण न करे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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