Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२६७
अध्ययन ११ ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• परिभुत्त मंडियालंकिय णिवुज्झमाणिं पेहाए एगं पुरिसं वा वहाए णीणिज्जमाणं पेहाए अण्णयराइंवा तहप्पगाराइंणो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥
कठिन शब्दार्थ - खुड्डियं - छोटी, दारियं - दारिका (बालिका), परिभुत्त - बहुत से लोगों से घिरी हुई, मंडिय - आभूषणों से मंडित, अलंकिय - अलंकृत, णिवुज्झमाणिंघोड़े आदि पर बिठा कर ले जाती हुई को, वहाए - वध के लिए, णीणिज्झमाणं - ले जाते हुए को।
'भावार्थ - साधु या साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं जैसे कि - वस्त्राभूषणों से मण्डित और अलंकृत तथा बहुत से लोगों से घिरी किसी छोटी बालिका को घोड़े आदि पर बिठा कर ले जाया जा रहा हो अथवा किसी अपराधी को वध के लिए वध स्थान में ले जाया जा रहा हो तथा अन्य इसी प्रकार की किसी शोभायात्रा में होने वाले शब्दों को सुनने की उत्कंठा से वहां जाने का मन से भी संकल्प न करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में किसी भी शोभा यात्रा में किये जाने वाले जयजयकार तथा वध आदि के प्रसंग पर धिक्कार सूचक नारों या हर्ष शोक सूचक शब्दों को सुनने के उद्देश्य से साधु या साध्वी को वहां जाने का निषेध किया गया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयराइं विरूवरूवाई महासवाइं एवं जाणिज्जा तंजहा - बहुसगडाणि वा, बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खूणि वा, बहुपच्चंताणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई महासवाई कण्णसोयणपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥
कठिन शब्दार्थ - महासवाई - महास्रव-महान् आस्रव के स्थानों को, बहुमिलक्खूणिबहुम्लेच्छ उत्सवों में।
भावार्थ - साधु या साध्वी अन्य नाना प्रकार के महास्रव स्थानों को इस प्रकार जाने जैसे कि - जहां बहुत से शकट, बहुत से रथ, बहुत से म्लेच्छ, बहुत से सीमा प्रान्तीय लोग इकट्ठे हुए हों अथवा. इसी प्रकार अन्य विविध महास्रव स्थान हों वहाँ कानों से शब्द सुनने की प्रतिज्ञा से जाने का मन में भी संकल्प न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाइं महुस्सवाइं एवं जाणिज्जा तंजहाइत्थीणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा, डहराणि वा, मज्झिमाणि वा, आभरण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org