Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पंचम सप्तिका रूप सप्तक नामक बारहवां अध्ययन .. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रूवाइं पासइ तंजहा - गंथिमाणि वा, वेढिमाणि वा, पूरिमाणि वा, संघाइमाणि वा, कट्ठकम्माणि वा, पोत्थकम्माणि वा, चित्तकम्माणि वा, मणिकम्माणि वा, दंतकम्माणि वा, पत्तच्छिजकम्माणि वा, विविहाणि वा, वेढिमाई जाव अण्णयराई वा, तहप्पगाराई विरूवरूवाइं चक्खुदंसणपडियाए णो अभिसंधारिजा गमणाए॥ एवं णायव्वं जहा सहपडियाए सव्वा वाइत्तवजा रूवपडियाए वि॥ १७१॥
॥ दुवालसमं अज्झयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - गंथिमाणि - गूंथे हुए फूलों आदि से बने हुए, स्वस्तिक आदि, वेढिमाणि - वस्त्र आदि से बनी हुई पुतली आदि, पूरिमाणि - पूरिम निष्पन्न पुरुषाकृति, जिनके अंदर कुछ भरने से पुरुषाकार बन जाते हैं ऐसे पदार्थ, संघाइमाणि - अनेक एकत्रित वर्षों से निर्मित चोलक आदि, कट्ठकम्माणि - काष्ठ कर्म, पोत्थकम्माणि - पुस्तक कर्म, पत्तच्छिजकम्माणि - पत्र छेदन कर्म से बने रूपादि, चक्खुदंसणपडियाए - चक्षुदर्शन प्रतिमा-आंखों से देखने की प्रतिज्ञा (इच्छा) से, सहवडियाए - शब्द प्रतिज्ञा से, वाइत्त - वाद्यों (वादिन्त्रों) को, वज्जा - छोड़ कर, रूवपडियाए - रूप प्रतिज्ञा से।
भावार्थ - साधु साध्वी अनेक प्रकार के रूपों को देखते हैं जैसे कि - गूंथे हुए फूलों से निष्पन्न स्वस्तिक आदि को, वस्त्रादि से निष्पन्न पुतली आदि को, जिनके अंदर कुछ पदार्थ भरने से पुरुषाकृति बन जाती हो ऐसी पुरिम निष्पन्न पुरुषाकृति को, संघात निष्पन्न चोलक आदि को, काष्ठ कर्म से निर्मित रथ आदि को, पुस्तकर्म से निर्मित पुस्तक आदि को, चित्रकर्म से निर्मित चित्रादि को, विविध मणिकर्म से निर्मित स्वस्तिक आदि को, दंत कर्म से निर्मित दंत पुत्तलिका को, पत्र छेदन कर्म से निर्मित विविध पत्रादि को अथवा अन्य विविधप्रकार से निष्पन्न नाना पदार्थों के रूपों को आंखों से देखने की इच्छा से उस ओर जाने का
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