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अध्ययन ७ उद्देशक २
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विवेचन - पूरे पके हुए आम में गुठली एवं बीट में जीव होते हैं। इन दोनों भागों को पृथक् कर देने पर छिलका सहित पूरा आम अचित्त होता है। इस प्रकार अचित्त आम के विभागों के ग्रहण करने की विधि का प्रस्तुत सूत्र में विधान किया गया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा उच्छुवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे जाव उग्गहंसि एवोग्गहियंसि॥ अह भिक्खू इच्छिज्जा उच्छु भुत्तए वा पायए वा, से जं उच्छं जाणिज्जा सअंडं जाव णो पडिगाहिज्जा, अतिरिच्छछिण्णं तहेव तिरिच्छछिण्णे वि तहेव॥
कठिन शब्दार्थ - उच्छुवणं - इक्षु वन में। - भावार्थ - यदि साधु या साध्वी इक्षु वन में ठहरना चाहें तो उस वन के स्वामी या अधिष्ठाता से आज्ञा लेकर ठहरे। आज्ञा प्राप्त होने पर यदि वह इक्षु (गन्ना) खाना चाहे तो इक्षु के संबंध में पहले यह जाने कि जो इक्षु अंडों से युक्त यावत् मकडी के जालों से युक्त है तिरछा कटा हुआ नहीं है, उसको ग्रहण न करे। यदि इक्षु अण्डादि से रहित और तिरछा छेदन किया हुआ हो तो उसको प्रासुक और एषणीय जान कर प्राप्त होने पर ग्रहण कर सकता है। शेष वर्णन आम्र के अनुसार ही जानना चाहिये।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण अभिकंखिज्जा अंतरुच्छुयं वा उच्छुर्गड़ियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडालगं वा भुत्तए वा पायए वा॥ से जं पुण जाणिज्जा अंतरुच्छयं वा जाव डालगं वा सअंडं जाव णो पडिगाहिज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा अंतरुच्छुयं वा जाव डालगं वा अप्पंडं वा जाव णो पडिग्गाहिज्जा अतिरिच्छछिण्णं तहेव॥
कठिन शब्दार्थ - अंतरुच्छुयं - इक्षु के पर्व का मध्य भाग। . भावार्थ - यदि साधु या साध्वी इक्षु के पर्व का मध्य भाग, इक्षुगंडिका, इक्षु त्वचाछाल, इक्षु रस और इक्षु के सूक्ष्म खंड आदि को खाना पीना चाहे तो वह अंडादि यावत् मकडी के जालों से युक्त हो तो उन्हें अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे। साधु साध्वी यह जाने कि ईख के पर्व का मध्य भाग यावत् ईख के टुकड़े अण्डों यावत् मकडी के जालों से रहित होने पर भी तिरछे काटे हुए न हो तथा वे खंड खंड भी न किये हुए हों
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