Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १० .......00000000000000000000...........................
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, असणवणंसि वा, सणवणंसि वा, धायइवणंसि वा, केयइवणंसि वा, अंबवणंसि वा, असोगवणंसि वा, णागवणंसि वा, पुण्णागवणंसि वा, चुण्णगवणंसि वा, अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु वा पत्तोवेएसु वा, पुष्फोवेएसु वा, फलोवेएसु वा, बीओवेएसुवा, हरिओवेएसु वा णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा।।१६६॥
कठिन शब्दार्थ - असणवर्णसि - अशन यानी बीजक वृक्ष के वन में, सणवर्णसि - सण के वन में, धायइवणंसि - धातकी वृक्ष के वन में, केयइवणंसि - केतकी के वन में, पुण्णागवणंसि - पुन्नाग वृक्षों के वन में, चुण्णगवणंसि - चुन्नक (चुल्लक) वृक्षों के वन में, पत्तोवेएसु - पत्रों से युक्त पान आदि वनस्पति वाले स्थान में। - भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थंडिल को जाने जहाँ बीजक वृक्ष का वन है, पटसन का वन है, धातकी का वन है, केतकी का वन है, आम्र वन है, अशोक वन है, नाग वन है, पुनाग वृक्षों का वन है, चुल्लक वृक्षों का वन है, ऐसे तथा इसी प्रकार के अन्य स्थंडिल भूमि जो पत्रों, पुष्पों, फलों, बीजों या हरियाली से युक्त हों वहाँ मल मूत्र का विसर्जन न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सयपाययं वा परपाययं वा गहाय से तमायाए एर्गतमवक्कमिजा अणावायंसि असंलोइयंसि अप्पपाणंसि जावें मक्कडासंताणयसि अहारामंसि वा उवस्सयंसि तओ संजयामेव उच्चार पासवर्ण वोसिरिजा, उच्चारपासवणं वोसिरित्ता से तमायाए एर्गतमवक्कमे अणावार्यसि जाव मक्कडासंताणयसि अहारामंसि वा, ज्झामथंडिलंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि अचित्तंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवर्ण परिविजा॥
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय जाव जइजासि त्ति बेमि॥१६७॥
कठिन शब्दार्थ - सयपायर्य - स्व पात्रक, परपायर्य - परपात्रक, अणावार्यसि - अनापात-जहाँ लोगों का आवागमन न हो, असंलोइयसि - जहाँ पर कोई देखता न हो, अहारामंसि - आराम बगीचे आदि में, झामर्थडिलसि - दग्ध भूमि में।
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