Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 270
________________ अध्ययन १० २५७ भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थंडिल भूमि को जाने जहां कोट की अटारी, चर्या, द्वार, गोपुर-नगर के मुख्य द्वार हों ऐसे तथा इसी प्रकार के अन्य स्थंडिल भूमि में मल मूत्र को न परठे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, तियाणि वा, चउक्काणि वा, चच्चराणि वा, चउमुहाणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा। कठिन शब्दार्थ - तियाणि - तिराहे, चउमुहाणि - चतुर्मुख। भावार्थ - साधु या साध्वी यदि किसी ऐसे स्थंडिल भूमि के विषय में जाने जहां तिराहे-तीन मार्ग मिलते हों, चौराहे-जहां चार मार्ग मिलते हों, चौक हो, चतुर्मुख स्थान हों ऐसे तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में मल मूत्र का विसर्जन न करे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, इंगालडाहेसु वा, खारडाहेसु वा, मडयडाहेसु वा, मडयथूभियासु वा, मडयचेइएसु वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा॥ कठिन शब्दार्थ - इंगालडाहेसु - जहां लकडियां जलाकर कोयले बनाये जाते हों, खारडाहेसु - क्षार, राख आदि के स्थान हों, मडयडाहेसु - मृतक जलाने के स्थान हों, मडयथूभियासु - मृतक स्तूप हों, मडयचेइएसु - मृतक चैत्य। भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल भूमि को जाने जहां लकड़ियाँ जला कर कोयले बनाये जाते हों, क्षार या राख बनाये जाते हों, मृतक जलाए जाते हों, मृतक स्तूप हों. या मृतक चैत्य हों ऐसे या इसी प्रकार के अन्य स्थानों पर मल मूत्र का त्यांग न करे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, णईयाययणेसु वा, पंकाययणेसु वा, ओघाययणेसु वा, सेयणवहंसि वा अण्णयरसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा॥ कठिन शब्दार्थ - पईयाययणेस - नद्यायतनं-नदियों के स्थान-तीर्थस्थानों में, पंकाययणेसु - पंकायतन-नदी के पास कीचड़ का स्थान, ओघाययणेसु - ओपायतनजलप्रवाह या तालाब के जल में प्रवेश के स्थान में, सेयणवहसि - सेचनपथ-जलसिंचाई का मार्ग-नहर या नाली में। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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