Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १०
२५५
भावार्थ - साधु या साध्वी स्थंडिल भूमि के विषय में यह जाने कि जहां पर कूड़े कर्कट के ढेर हों, भूमि फटी हुई या पोली हों, भूमि पर दरारें पड़ी हुई हों, कीचड हो, इक्षु आदि काट लेने पर उनके बचे हुए ढूंठ, स्तंभ या कटे हुए मक्की, जवार आदि धान्य के ढूंठ हो, किले की दीवार या प्राकार आदि हों, इस प्रकार के विषम स्थान हों तो ऐसे स्थानों पर अथवा इसी प्रकार के अन्य सदोष स्थानों पर मल मूत्र का विसर्जन न करे। . विवेचन - ऐसे विषम स्थानों में मल मूत्रादि का विसर्जन करने से संयम की हानि और आत्म-विराधना संभव है। अत: आगमकार ने ऐसे स्थानों पर परठने का निषेध किया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा माणुसरंधणाणि वा, महिसकरणाणि वा, वसहकरणाणि वा, अस्सैकरणाणि वा, कुक्कुडकरणाणि वा, मक्कडकरणाणि वा लावयकरणाणि वा वट्टयकरणाणि वा, त्तित्तिरकरणाणि वा, कवोयकरणाणि वा, कविंजलकरणाणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - माणुसरंधणाणि - भोजन पकाने के. चूल्हे आदि, महिसकरणाणिमहिषकरण-भैंस आदि के आश्रय स्थान, अस्सकरणाणि - अश्वकरण-अश्वों का आश्रय स्थान अथवा अश्व शिक्षा देने का स्थान।
भावार्थ - साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थंडिल के संबंध में जाने कि जहां मनुष्यों के भोजन पकाने के चूल्हे आदि सामान रखे हों तथा भैंस, बैल, घोड़, मुर्गा या कुत्ता, लावकपक्षी, बतक, तीतर, कबूतर, कपिंजल (पक्षी विशेष) आदि के आश्रय स्थान हों अथवा इनको शिक्षित करने के स्थान हों ऐसे अथवा इसी प्रकार के अन्य स्थंडिल भूमि में मल मूत्र आदि
का त्याग न करे। ____ विवेचन - ऐसे स्थानों पर लोक विरोध तथा प्रवचन विघात के भय से साधु साध्वी
को मल मूत्र आदि का त्याग नहीं करना चाहिये। . से भिक्ख वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा, वेहाणसटाणेस वा, गिद्धपिट्ठट्ठाणेसु वा, तरुपडणट्ठाणेसु वा, मेरुपडणट्ठाणेसु वा, विसभक्खणट्ठाणेसु वा, अगणिपडणट्ठाणेसु वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा॥
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