Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr...
इच्चेयाइं आययणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू इच्छिज्जा चउहिं पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए, तत्थिमा पढमा पडिमा - अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा अवलंबिज्जा काएण विप्परिकम्माइ सवियारं ठाणं ठाइस्सामि। पढमा पडिमा। अहावरा दुच्चा पडिमा - अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा अवलंबिज्जा काएण विप्परिकम्माइ णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि। दुच्चा पडिमा। अहावरा तच्चा पडिमा - अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा अवलंबिज्जा णो काएण विप्परिकम्माइ णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति तच्चा पडिमा। अहावरा चउत्था पडिमा - अचित्तं खलु उवसज्जिज्जा णो अवलंबिज्जा कारण णो विप्परिकम्माइ णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति वोसट्ठकाए वोसट्ठ-केसमंसुलोमणहे संणिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति। चउत्था पडिमा। ___ इच्चेयासिं चउण्हं पडिमाणं जाव पग्गहियतरायं विहरिज्जा, णो किंचि वि वइज्जा ।
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जाव जइज्जासि त्ति बेमि॥१६३॥
॥ठाणसत्तिक्कयं समत्तं॥॥अट्ठमं अज्झयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - उवसज्जिज्जा - आश्रय लूंगा, अवलंबिजा - सहारा लूंगा, विप्परिकम्माइ- संकोचन प्रसारण करूंगा, वोसट्ठ-केस-मंसु-लोमणहे - केश, दाढी, मूंछ, रोम, नख के ममत्व को त्याग कर, संणिरुद्धं-सम्यक् रूप से निरोध करके, पग्गहियतरायंकिसी एक प्रतिमा को ग्रहण करके। ___भावार्थ - इन पूर्वोक्त कर्मोपदान रूप दोष स्थानों को छोड़ कर साधु साध्वी आगे कही जाने वाली चार प्रतिमाओं के अनुसार किसी स्थान में ठहरने की इच्छा करे अर्थात् कायोत्सर्गादि क्रिया करे
१. पहली प्रतिमा में साधु प्रतिज्ञा करता है कि मैं अचित्त स्थान में रहूंगा, अचित्त भीत आदि का सहारा लूंगा, हाथ पैर आदि का संकुचन प्रसारण करूंगा और पैरों से मर्यादित भूमि में पैरों से संक्रमण (विचरण) आदि करूंगा। यह पहली प्रतिमा है।
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