Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १०
२५१
उपरोक्त आगम पाठ से यह भी स्पष्ट होता है कि साधु साध्वी को मल मूत्र का त्याग करने के लिये एक अलग पात्र रखना चाहिये जिसे मात्रक कहते हैं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा अस्सिं (अस्सं) पडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स वा अस्सं पडियाए बहवे साहम्मिया समुहिस्स अस्सं पडियाए एगं साहम्मिणिं समुद्दिस्स अस्सं पडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स अस्सं पडियाए बहवे समण माहण अतिहि किवण वणीमगे पगणिय पगणिय समुहिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई उद्देसियं चेएइ, तहप्पगारं थंडिल्लं पुरिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारं पासवणं वोसिरिज्जा। - भावार्थ - साधु या साध्वी यह जाने कि यदि किसी गृहस्थ ने एक साधु या बहुत से साधुओं का उद्देश्य रख कर स्थंडिल बनाया हो अथवा एक साध्वी या बहुत सी साध्वियों का उद्देश्य रख कर स्थंडिल बनाया हो अथवा बहुत से श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण, भिखारी .एवं गरीबों को गिन गिन कर उनके लिए प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों की हिंसा करके स्थंडिल भूमि को तैयार किया हो तो इस प्रकार का स्थंडिल पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत हो, किसी अन्य के द्वारा भोगा गया हो अर्थात् काम में ले लिया गया हो या न भोगा गया हो, या अन्य तथाप्रकार के दोष युक्त स्थण्डिल में साधु साध्वी मल मूत्र का त्याग न करे।
- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा बहवे समण माहण-अतिहि-किवण-वणीमग समुहिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई जाव उद्देसियं चेएइ, तहप्पगारं थंडिलं अपुरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा, अह पुण एवं जाणिज्जा पुरिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा।
भावार्थ - साधु या साध्वी ऐसे स्थंडिल को जाने जो किसी गृहस्थ ने श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि कृपण या भिखारी आदि का उद्देश्य रख कर प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का आरंभ
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