Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ६ उद्देशक १
२२१ .000000000000000000000000000000000000000000000000........ धम्मियं पायं जाइज्जा जाव अण्णे बहवे समणा माहणा जाव वणीमगाणावकंखंति तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाव पडिगाहिज्जा चउत्था पडिमा ४। इच्चेइयाणं चउण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं, जहा पिंडेसणाए॥
कठिन शब्दार्थ - संगइयं - स्वांगिक-गृहस्थ का भोगा हुआ, वेजइयंतियं - दो या तीन पात्रों में बारी-बारी से भोजन किया जाता हो। __भावार्थ - ये सब पूर्वोक्त पात्र संबंधी दोषों के स्थान हैं। इनको छोड़ कर पात्र ग्रहण करना चाहिए।
साधु साध्वी यह जाने कि उसे चार प्रतिमाओं-अभिग्रह विशेषों से पात्र की गवेषणा करनी है। उन चार प्रतिमाओं में से पहली प्रतिमा है- साधु या साध्वी नाम लेकर पात्र की याचना करे जैसे कि-तुम्बे का पात्र, काष्ठ का पात्र, मिट्टी का पात्र, तथाप्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे यावत् ग्रहण करे। यह पहली प्रतिमा है। दूसरी प्रतिमा-साधु या साध्वी देख कर पात्र की याचना करे जैसे कि गृहपति यावत् काम करने वाले दास दासी आदि से वह पात्र देख कर इस प्रकार कहे-हे आयुष्मन् गृहस्थ! अथवा भगिनी! क्या मुझे इन पात्रों में से कोई एक पात्र दोगे या दोगी? इस तरह पात्र की स्वयंमेव याचना करे अथवा बिना मांगे कोई देवे यावत् ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा है। तीसरी प्रतिमा-साधु या साध्वी स्वयं गृहस्थ के द्वारा उपभुक्त भोगे हुए पात्र या दो तीन ऐसे पात्र जिनमें खाद्य पदार्थ पड़े हो अथवा उनमें भोजन किया जा रहा हो। ऐसे तथाप्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे या गृहस्थ बिना मांगे देवे तो यावत् ग्रहण करे, यह तीसरी प्रतिमा है। चौथी प्रतिमा-साधु या साध्वी उण्झित धर्म वाले पात्र की याचना करे यावत् अन्य बहुत से शाक्यादि श्रमण जिसे नहीं चाहते तथाप्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे या गृहस्थ बिना मांगे देवे तो प्रासुक एवं एषणीय जान कर मिलने पर ग्रहण करे। यह चौथी प्रतिमा है। इन चार प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को ग्रहण करे शेष वर्णन पिण्डषणा अध्ययन में वर्णित प्रतिमाओं की तरह जानना चाहिए।
विवेचन - तीसरी प्रतिमा में आये हुए 'संगइयं वा वेजइयंतियं वा' शब्दों का अर्थ वृत्तिकार एवं चूर्णिकार ने इस प्रकार किया है - संगइयं - दाता के द्वारा परिभुक्त। (चूर्णि० दो या तीन पात्रों का गृहस्थ बारी बारी से उपयोग करता है, साधु के याचना करने पर एक पात्र देता है, ऐसे पात्र के लेने में दोष नहीं।) वेजइयंतियं - उसमें भोजन किया जा रहा है
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