Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ७ उद्देशक १
२३३ ......................................................... के साथ शयनीय उपकरणों का लेन-देन खुला होता है। इस भेद को बताने के लिए ही ये तीन शब्द (साधर्मिक, समनोज्ञ, सांभोगिक) दिये हैं।
से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा जाव से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा सूई वा पिप्पलए वा कण्णसोहणए वा णहच्छेयणए वा तं अप्पणो एगस्स अट्ठाए पाडिहारियं जाइत्ता णो अण्णमण्णस्स दिज्ज वा अणुपइज्ज वा सयं करणिज्जं त्ति कट्ट से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा गच्छित्ता पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे कट्ट भूमीए वा ठवित्ता इमं खलु इमं खलु त्ति आलोइज्जा, णो चेव णं सयं पाणिणा परपाणिंसि पच्चप्पिणिज्जा।। १५७॥
कठिन शब्दार्थ - पिप्पलए - कैंची, कण्णसोहणए - कर्णशोधनक, णहच्छेयणए - नख छेदनक, अणुपइज्ज - बार-बार दे, उत्ताणए - उत्तानक-ऊंचा हाथ करके।
भावार्थ - आज्ञा प्राप्त कर धर्मशाला आदि में ठहरा हुआ कोई साधु या साध्वी गृहस्थ 'या गृहस्थ पुत्र आदि से सूई, कैंची, कर्णशोधनक, नखछेदनक आदि उपकरण अपने स्वयं के प्रयोजन के लिये प्रातिहारिक के रूप में मांग कर लाया हो तो वह उन उपकरणों को अन्य साधुओं को न दे किंतु अपना कार्य करके उन प्रातिहारिक वस्तुओं को लेकर गृहस्थ के यहाँ जाए और लम्बा हाथ करके उन उपकरणों को भूमि पर रख कर गृहस्थ से कहे कि - यह तुम्हारी अमुक वस्तु है, इसे संभाल लो, देख लो परन्तु उन सूई आदि वस्तुओं को साधु अपने हाथ से गृहस्थ के हाथ पर रख कर न सौंपे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा अणंतरहियाए पुढवीए ससणिद्धाए पुढवीए जाव संताणए तहप्पगारं उग्गहं णो उगिण्हिज्जा वा पगिहिज्जा वा॥
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उग्गहं जाणिज्जा थूणंसि वा गिहेलुगंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे जाव णो उगिण्हिज्जा वा पगिहिज्जा वा॥
कठिन शब्दार्थ - अतंलिक्खजाए - अंतरिक्षजात, दुब्बद्धे - दुर्बद्ध-अस्थिर।
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