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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .0000000000000000000000000000000000000000000000000000000. ऐसा पात्र (चूर्णि० जिस पात्र में भोजन करके राजा आदि के उत्सव या मृत्युकृत्य पर खाद्य को रख कर या भूनकर छोड़ दिया जाता है, वह पात्र) वृत्तिकार के मत से संगइयं - दाता द्वारा उस पात्र में प्रायः स्वयं भोजन किया गया हो, वह स्वांगिक पात्र। - से णं एयाए एसणाए एसमाणं पासित्ता परो वइज्जा, आउसंतो समणा! एजासि तुमं मासेण वा जहा वत्थेसणाए। से णं परो णेया वइजा, आउसो त्ति वा, भइणि त्ति वा आहरेयं पायं तिल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अब्भंगित्ता वा तहेव सिणाणाइ तहेव सीओदगाई कंदाइं तहेव॥
कठिन शब्दार्थ - कंदाइं - कंदादि के विषय में।
भावार्थ - इस प्रकार पात्र की गवेषणा करते हुए साधु को देख कर यदि कोई गृहस्थ उसे कहे कि "आयुष्मन् श्रमण! इस समय तो तुम जाओ। एक मास के बाद यावत् कल या परसों तक आकर पात्र ले जाना आदि। शेष सारा वर्णन वस्त्रैषणा की तरह समझना चाहिये। - यदि कोई गृहस्थ साधु को देख कर अपने कौटुम्बिक जनों में से किसी पुरुष या स्त्री को बुला कर यह कहे कि आयुष्मन् या बहन! वह पात्र लाओ हम उस पर तेल, घृत, नवनीत या वसा आदि लगा कर साधु को देंगे। शेष स्नानादि शीतउदक तथा कंदमूल विषयक सारा वर्णन वस्त्रैषणा अध्ययन के समान जानना चाहिये।
से णं परो णेया वइज्जा "आउसंतो समणा! मुहुत्तगं मुहुत्तगं अच्छाहि जाव ताव अम्हे असणं वा उवकरिस वा उवक्खडिंसु वा तो ते वयं आउसो। सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दाहामो, तुच्छए पडिग्गहए दिण्णे समणस्स णो सुटु साहु भवइ" से पुव्वामेव आलोइज्जा-आउसो त्ति वा भइणि त्ति वा णो खलु मे कप्पइ आहाकम्मिए असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, भुत्तए वा, पायए वा मा उवकरेहि मा उवक्खडेहि अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि से सेवं वयंतस्स परो असणं वा पाणं वा, खाइम वा, साइमं वा, उवकरित्ता उवक्खडित्ता सपाणं सभोयणं पडिग्गहर्ग दलइजा तहप्पगारं पडिग्गहगं अफासुर्य जाव णो पडिग्गाहिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - तुच्छए - तुच्छ (खाली) सुद्ध - अच्छा, साहु - श्रेष्ठ।
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