Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ आये हुए "पाणं" शब्द का अर्थ - पानी, अर्थकार करते हैं ऐसा ही टीकाकार भी पानी जाचने का ही टीका में अर्थ करते हैं। यह उद्देशक भी पात्र याचना के लिए न होकर आहार पानी आदि के लिए साधु जावे तो पात्र व्यवस्था कैसे रखनी, इसके विषय में है। जैसे - साधु आहार पानी याचने के लिए जावे तो पात्रादि देख लेवे। पूंज लेवे। शीतोदक आ जावे
और अगर दूसरी कोई व्यवस्था न हो तो शीतोदक का पात्र पानी सहित परठा देवे। अगर पानी की दूसरी व्यवस्था हो जावे किन्तु पात्र गीला हो तो उसको पौंछे नहीं। सूखावे नहीं। सूखने पर पौंछे एवं सूखावे। साधु गोचरी जावे, विहार करे, स्थंडिल जावे, स्वाध्याय के लिए जावे अपने सभी पात्र साथ में ले जावे। अगर वर्षा संभावनादि कारण हो तो न ले जावे। पात्र याचना का विधान प्रथम उद्देशक में आया है। इसमें पात्र व्यवस्था का विधान है। इस सूत्र के टीका के अर्थ में 'शीतोदक' करते हैं और मूल में 'तहप्पगार पडिग्गह' शब्द है। प्रोफेसर रवजीभाई देवराज कृत आचारांग के भाषांतर में इसी सूत्र का अर्थ करते हुए नीचे टिप्पण दिया है कि 'तहप्पगारं पडिग्गहं' की जगह 'तहप्पगारं सीओदगं इति शुद्धः . पाठः संभाव्यते।' ऐसा लिखा है और यह ठीक भी जंचता है। निश्चितता तो ज्ञानी जाने।
॥छठे अध्ययन का द्वितीय उद्देशक समाप्त॥
® पात्रैषणा नामक छठा अध्ययन समाप्त ®
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