Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
बनाया है शेष वर्णन जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में आहार के विषय में किया गया है उसी प्रकार यहाँ पात्र के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। शेष वर्णन वस्त्रैषणा के आलापकों के समान पात्रैषणा के लिए भी समझना चाहिये।
साधु या साध्वी पात्र के विषय में ऐसा जाने कि जो पात्र नाना प्रकार के और बहुत मूल्य के हैं जैसे लोह पात्र, रांगे के पात्र, ताम्बे, सीसे, चांदी और सोने के पात्र, पीतल के पात्र, लोह विशेष के पात्र, मणि, कांच और कांसी के पात्र, शंख और श्रृंग के पात्र, दांत के पात्र, वस्त्र के पात्र, पत्थर और चर्म के पात्र दूसरे भी इसी प्रकार के पात्र जो बहुमूल्य हैं उन्हें अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। ___ यदि काष्ठ आदि के कल्पनीय पात्र पर लोहे स्वर्ण आदि के बहुमूल्य बन्धन लगे हों तब भी साधु साध्वी उस पात्र को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे।
विवेचन - आहार, वस्त्र आदि की तरह साधु साध्वी को वह पात्र भी ग्रहण नहीं करना चाहिए जो उनके लिए बनाया गया है। साधु साध्वी को आधाकर्म आदि दोषों से रहित तुम्बे, काष्ठ एवं मिट्टी के पात्र ही ग्रहण करना चाहिये। इन तीन जाति के पात्र के सिवाय दूसरी जाति के पात्र यथा-प्लास्टिक या अन्य किसी प्रकार के पात्र ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि इस आगम में दूसरी जाति के पात्र ग्रहण करने का निषेध किया गया है।
इच्चेयाइं आययणाइं उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणिजा चउहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय उद्दिसिय पायं जाइज्जा, तंजहा-अलाउयपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाइज्जा जाव पडिगाहिज्जा। पढमा पडिमा १। अहावरा दोच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए पायं जाइज्जा तंजहागाहावई वा जाव कम्मकरिं वा से पुव्वामेव आलोइज्जा, आउसो त्ति वा भइणि त्ति वा दाहिसि मे इत्तो अण्णयरं पायं तंजहा - लाउयपायं वा जाव तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाइजा परो वा से दिज्जा जाव पडिगाहिजा। दोच्चा पडिमा २। अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण पायं जाणिजा संगइयं वा वेजइयंतियं वा तहप्पगारं पायं सयं वा जाव पडिगाहिज्जा। तच्चा पडिमा ३। अहावरा चउत्था पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झिय
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