Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ************************....0000000000000000000 णो एवं वइज्जा, तंजहा-पक्का इवा, णीलिया इवा, छवीइया इवा, लाइमा इ वा, भज्जिमा इवा, बहुखज्जा इ वा एयप्पगारं भासं सावजं जाव णो भासिज्जा। __कठिन शब्दार्थ - ओसहीओ - औषधियाँ, णीलिया - हरी-कच्ची, छवीइया - छवि वाली, लाइमा - काटकर फूली या धाणी बनाने योग्य, भजिमा - पूंजने-सेकने योग्य, बहुखज्जा - बहुत खाने योग्य अर्थात् होला बनाने योग्य।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी बहुत परिमाण में उत्पन्न हुई औषधियों (धान्यों के पौंधों) को देखकर इस प्रकार नहीं बोले कि-ये पक गई हैं अथवा यह नीली अर्थात् कच्ची या हरी हैं, ये सुन्दर छवि वाली हैं, ये काटकर फूली या धाणी बनाने योग्य हैं, ये पकाने योग्य हैं या भंजने-सेकने योग्य हैं, ये भली भांति खाने योग्य हैं अर्थात् होला बनाने योग्य हैं, इस प्रकार की सावध यावत् जीवोपघातिनी भाषा नहीं बोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पहाए तहावि एवं वइज्जा तंजहा-रूढा इ वा, बहुसंभूया इ वा, थिरा इ वा, ऊसढा इ वा, गभिया इवा, पसूया इवा, ससारा इ वा एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव भासिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - रूढा - रूढ, थिरा - स्थिर, ऊसढा - रस युक्त, गब्भिया - गर्भिता-इन में दाने पड़ चुके हैं, पसूया - प्रसूता-उत्पन्न हो गये हैं, ससारा - ससार-सार युक्त अर्थात् धान्य युक्त।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी बहुत परिमाण में उत्पन्न हुई औषधियों-गेहूँ ज्वार आदि धान्यों के पौधों को देख कर यदि प्रयोजन वश बोलना पडे तो इस प्रकार कह सकता है कि - यह रूढ है- इसमें अंकुर निकला है, यह निष्पन्न प्रायः हो गई है, यह औषधि स्थिर है या यह रस युक्त है यह अभी गर्भ में है, यह उत्पन्न हो गई है इसमें धान्य पड गया है, इस प्रकार की असावद्य यावत् जीवोपघात से रहित भाषा बोले।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधु साध्वी को भाषा प्रयोग के विषय में विशेष सावधानी रखने का आदेश दिया गया है। साधु साध्वी को ऐसे शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिये जिससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी जीव की हिंसा की प्रेरणा मिलती हो। साधु साध्वी को सदैव निष्पापकारी भाषा का प्रयोग करना चाहिये।
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