________________
अध्ययन ५ उद्देशक १
२०३ .................................................... जाणिजा, तंजहा-उहाणि वा, पेसाणि वा, पेसलाणि वा, किण्हमिगाईणगाणि वा, णील मिगाईणगाणि वा, गोरमिगाईणगाणि वा, कणगाणि वा, कणगकंताणि वा, कणगपट्टाणि वा, कणगखइयाणि वा, कणगफुसियाणि वा, वग्याणि वा, विवग्याणि वा (विगाणि वा), आभरणाणि वा, आभरणविचित्ताणि वा, अण्णयराणि वा, तहप्पगाराणि आईणपाउरणाणि वत्थाणि लाभे संते णो पडिगाहिज्जा॥१४५॥
कठिन शब्दार्थ - आईणपाउरणाणि - चर्म एवं चर्म रोम से निष्पन्न वस्त्र, उहाणि - सिंधु देश के मृगों के चर्म से निष्पन्न, पेसाणि - सिंधु देश के पशुओं के सूक्ष्म चर्म से निष्पन्न, पेसलाणि - चर्म के सूक्ष्म रोमों से निष्पन्न, किण्हमिगाईणगाणि - कृष्ण मृग के चर्म से बने हुए, कणगाणि - कनक-सोने की झाल से बनाये हुए, कणगकंताणि - कनक के समान कांति वाले, कणगपट्टाणि - कनक रस से बने हुए, कणगखइणाणि - सोने के तारों से निर्मित, कणगफुसियाणि - सोने के स्तबकों से निर्मित, वग्याणि - व्याघ्र चर्म से निर्मित, आभरणविचित्ताणि - विचित्र प्रकार के आभरणों से विभूषित। ___भावार्थ - साधु या साध्वी चर्म एवं रोम से निष्पन्न वस्त्रों के विषय में यह जाने किसिन्धुदेश के मत्स्य के चर्म से बने हुए, सिंधुदेश के पशुओं के चर्म से बने हुए तथा उस चर्म पर स्थित सूक्ष्म रोमों से बने हुए, कृष्ण नील और श्वेत मृग के चर्म से निर्मित, स्वर्णजाल से सुशोभित स्वर्ण के समान कांति वाले, स्वर्ण तारों से खचित, स्वर्ण रस के स्तबकों से विभूषित बहुमूल्य वस्त्र अथवा व्याघ्र या वृक के चर्म से बने हुए सामान्य और विशेष प्रकार के आभरणों से सुशोभित अन्य प्रकार के चर्म एवं रोमों से बने वस्त्रों के मिलने पर भी साधु-साध्वी उसे ग्रहण न करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में देश और विदेश में बने हुए रेशम सूत्र चर्म एवं रोमों से बने बहुमूल्य वस्त्रों को ग्रहण करने का निषेध किया है। क्योंकि ऐसे बहुमूल्य वस्त्रों को देख कर चोरों के मन में दुर्भाव पैदा हो सकता है और साधु साध्वियों के मन में भी वस्त्रों के प्रति ममत्व भाव पैदा हो सकता है। चर्म एवं मुलायम रोमों से बने वस्त्रों में पशुओं की हिंसा भी होती है अतः प्रभु ने साधु साध्वियों के लिए ऐसे कीमती और महारंभी वस्त्र ग्रहण करने का निषेध किया है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org