Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
यदि मैं भी मुहूर्त आदि का उद्देश्य रख कर इनसे प्रातिहारिक वस्त्र की याचना कर एक दिन यावत् पांच दिन पर्यन्त किसी अन्य ग्रामादि में निवास कर वापस लौट जाऊँ जिससे वह वस्त्र उपहत हो जाने से मेरा हो जायेगा। इस प्रकार विचार कर यदि साधु साध्वी प्रातिहारिक वस्त्र को ग्रहण करे तो उसे मातृस्थान का स्पर्श होता है अर्थात् माया का दोष लगता है एवं साध्वाचार का उल्लंघन होता है। अतः साधु साध्वी ऐसा न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करिज्जा, णो विवण्णाई वत्थाई वण्णमंताई करिजा, अण्णं वा वत्थं लभिस्सामि त्ति कट्ट णो अण्णमण्णस्स दिजा, णो पामिच्चं कुज्जा णो वत्थेण वत्थपरिणामं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्त एवं वइज्जा-आउसंतो समणा! अभिकंखसि मे वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा? थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिंदिय पलिच्छिंदिय परिट्ठविज्जा, जहा मेयं वत्थं पावगं परो मण्णइ, परं च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स णियाणाए णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छिज्जा, जाव अप्पुस्सुए तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - विवण्णाई - विवर्ण-खराब वर्ण वाला, अदत्तहारी - बिना दिये लेने वाला-चोर, पडिपहे - प्रतिपथ-मार्ग में आते हुए को, अप्पुस्सुए - अल्पोत्सुक-राग द्वेष से रहित।
भावार्थ - साधु या साध्वी सुन्दर वर्ण वाले वस्त्रों को विवर्ण-खराब वर्ण वाला न करे और विवर्ण (असुन्दर) वस्त्रों को वर्ण युक्त न करे तथा मैं अन्य वस्त्र प्राप्त कर लूंगा ऐसा विचार करके अपना पुराना वस्त्र किसी अन्य साधु को न दे और न किसी से उधार वस्त्र ले
और न ही अपने वस्त्र की परस्पर अदला बदली भी करे। अन्य साधु के पास जाकर इस प्रकार न कहे- हे आयुष्मन् श्रमण ! क्या तुम मेरे वस्त्र को धारण करना या पहनना चाहते हो? मेरे इस वस्त्र को लोग अच्छा नहीं समझते हैं अतः वस्त्र के सुदृढ़ होने पर उसके खण्ड खण्ड (टुकड़े-टुकड़े) करके परठे भी नहीं। चोर को मार्ग में सामने आते हुए देख कर उस वस्त्र की रक्षा करने के लिए उनसे डर कर उन्मार्ग से गमन न करे यावत् राग द्वेष रहित होकर यतना पूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिज्जा इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा वत्थपडियाए
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