Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
पुण एवं जाणिज्जा तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सव्वं चीवरमायाए॥
कठिन शब्दार्थ - चीवरं - वस्त्र को, आयाए - लेकर, विहारभूमिं - विहारस्वाध्याय भूमि, वियारभूमिं - वियार-मल मूत्र त्यागने की भूमि। ___भावार्थ - वह साधु अथवा साध्वी आहारादि के लिये गृहस्थ के घर में जाते समय अपने वस्त्र साथ में लेकर उपाश्रय से निकले और गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। इसी प्रकार वसति (उपाश्रय) आदि से बाहर विहार-स्वाध्याय करने की भूमि में अथवा शौचार्थ स्थंडिल भूमि-मल आदि का त्याग करने की भूमि में अथवा ग्रामानुग्राम विहार करते समय अपने सभी वस्त्रों को साथ लेकर ही निकले। यदि वह यह जाने कि तीव्र वर्षा होती दिखाई दे रही है यावत् तिरछे उडने वाले त्रस प्राणी गिर रहे हैं तो यह सब देख कर साधु वैसा ही आचरण करे जैसा पिण्डैषणा अध्ययन में वर्णन किया गया है। इतनी विशेषता है कि वह अपने सभी वस्त्रों को साथ ले कर जाए।
विवेचन - टीकाकार ने बतलाया है कि ये विधान जिनकल्पी मुनि के लिए है किन्तु मूल सूत्र में 'वत्थधारिस्स' यह विशेषण दिया है इसलिए स्थविर कल्पी के लिए भी समझने में बाधा नहीं है। यहाँ पहले सूत्र में गोचरी (भिक्षा), स्वाध्याय और शौच तथा ग्रामानुग्राम विहार के लिए जाते आते समय सभी वस्त्र साथ में लेकर जाने का विधान है। दूसरे सूत्र में अत्यन्त वर्षा हो रही हो, धूअर पड़ रही हो, आँधी या तूफान के कारण तेज हवा चल रही हो, त्रसप्राणी इधर-उधर गिर रहे हों उस समय वस्त्र साथ में लेकर जाने का विधान नहीं है और यहाँ तक कि उपाश्रय से बाहर निकलने का भी निषेध है। ये दोनों विधान परस्पर सापेक्ष हैं। इनमें आत्म-विराधना और प्राणी विराधना की संभावना से विधि निषेध हैं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा एगइओ मुहुत्तगं मुहुत्तगं पाडिहारियं बीयं वत्थं जाइजा जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा तिया चउ पंचाहेण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छिज्जा, तहप्पगारं वत्थं णो अप्पणा गिहिज्जा, णो अण्णमण्णस्स दिजा, णो पामिच्चं कुजा, णो वत्थेण वत्थपरिणामं करिज्जा, णो परं उवसंकमित्ता एवं वइजा-आउसंतो समणा! अभिकंखसि वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा? थिरं वा संतं णो पलिच्छिंदिय पलिच्छिंदिय परिविजा तहप्पगारं वत्थं ससंधियं वत्थं तस्स चेव णिसिरिजा णो अत्ताणं साइजिजा॥
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