Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
भावार्थ - वह गृहस्थ - गृहस्वामी यदि घर के किसी भी व्यक्ति को कहे कि आयुष्मन् या बहिन ! वह वस्त्र लाओ, हम उसे शीतल जल से या उष्ण जल से उत्क्षालन करके अर्थात् एक बार धो कर तथा प्रक्षालन करके अर्थात् बार-बार धो कर साधु साध्वी को देंगे। इस प्रकार के शब्द सुन कर साधु साध्वी उसे ऐसा करने के लिए मना करे और कहे कि यदि तुम मुझे देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो। मना करने पर भी यदि गृहस्थ उस वस्त्र को ठंडे या गर्म जल से धोकर देना चाहे तो उसे अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। इसी प्रकार गृहस्थ उस वस्त्र को कंद से यावत् हरी (वनस्पति) से विशुद्ध करके देना चाहे और मना करने पर भी वह क्रिया करे तो उस वस्त्र को अप्राक एवं अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे और कहे कि इस प्रकार का वस्त्र ग्रहण करना मुझे नहीं कल्पता है।
सिया से परो णेया वत्थं णिसिरिज्जा, से पुव्वामेव आलोइंज्जा आउसो इ वा, भइणि इ वा तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतोअंतेणं पडिलेहिज्जिस्सामि केवली बूया आयाणमेयं, वत्थंतेणं उबद्धे सिया कुंडले वा, गुणे वा, हिरण्णे वा, सुवणे वा, मणी वा जाव रयणावली वा पाणे वा, बीए वा, हरिए वा, अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा जाव जं पुव्वामेव वत्थं अंतोअंतेणं पडिलेहिज्जा ॥
कठिन शब्दार्थ - णिसिरिज्जा - देवे, अंतोअंतेणं चारों ओर से, पडिलेहिज्जिस्सामिप्रतिलेखना करूँगा, वत्थंतेण - वस्त्र के अन्त में, गुणे- धागा - डोरा, रयणावली - रत्नावलीरत्नों की माला ।
भावार्थ - कदाचित् वह गृहस्थ साधु साध्वी को वस्त्र देवे तो उससे कहे कि हे आयुष्मन् ! मैं तुम्हारे इस वस्त्र की चारों ओर से प्रतिलेखना करूँगा अर्थात् इसे अंदर बाहर चारों ओर से अच्छी तरह से देखूंगा, क्योंकि बिना प्रतिलेखन किये वस्त्र लेने को केवली भगवान् ने कर्म बंधन का कारण कहा है। कदाचित् उप वस्त्र के अंत में, सिरे पर कुण्डल, डोरा, चांदी, सोना, मणि यावत् रत्नावली आदि बंधी हुई हो अथवा प्राणी, बीज या हरी वनस्पति बंधी हो । अतः तीर्थकरों ने साधु साध्वियों के लिये पहले ही यह आदेश दे रखा है। कि वह वस्त्र को चारों ओर से प्रतिलेखना करके ग्रहण करे।
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विवेचन प्रस्तुत सूत्र में स्पष्ट किया गया है कि साधु साध्वी सभी दोषों से रहित निर्दोष वस्त्र को अच्छी तरह देख कर ग्रहण करे।
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