Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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'आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध errrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr...
इच्चेयाई आययणाई उवाइकम्म अह भिक्खू जाणिज्जा चउहि पडिमाहिं वत्थं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्देसिय वत्थं जाइज्जा तंजहा - जंगियं वा भंगियं वा साणयं वा पोत्तयं वा खोमियं वा तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाइज्जा, परो वा णं दिज्जा फास्यं एसणीयं लाभे संते पडिग्गाहिज्जा, पढमा पडिमा १। अहावरा दुच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाइज्जा तंजहा - गाहावई वा जाव कम्मकरी वा, से पुव्वामेव आलोइज्जा-आउसो त्ति वा, भगिणि इ.वा, दाहिसि मे इत्तो अण्णयरं वत्थं ? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाइज्जा, परो वा से दिज्जा फासुयं एसणीयं लाभे संते पडिग्गाहिज्जा। दुच्चा पडिमा २। अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण वत्थं जाणिज्जा तंजहाअंतरिजं वा, उत्तरिजगं वा, तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाइज्जा जाव पडिगाहिज्जा। तच्चा पडिमा ३। अहावरा चउत्था पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झियधम्मियं वत्थं जाइज्जा, जं च अण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवणवणीमगा णावकंखंति तहप्पगारं उज्झियधम्मियं वत्थं सयं वा णं जाइज्जा परो वा से दिज्जा फासुयं जाव पडिगाहिज्जा। चउत्था पडिमा ४॥ इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं जहा पिंडेसणाए॥ ..
कठिन शब्दार्थ - उवाइकम्म - अतिक्रम करके, अंतरिजं - अंदर पहनने के योग्य।
भावार्थ - साधु या साध्वी पूर्वोक्त दोष स्थानों को छोड़ कर चार प्रतिमाओं-अभिग्रह विशेषों से वस्त्र की गवेषणा करे, उनमें से पहली प्रतिमा है - वह साधु या साध्वी मन में निश्चित किये हुए ऊन यावत् अर्क तूल निर्मित वस्त्र अथवा तथाप्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे या कोई गृहस्थ देवे तो प्रासुक और एषणीय जान कर उसे ग्रहण कर ले। यह पहली प्रतिमा है। ___अब दूसरी प्रतिमा के विषय में कहते हैं - वह साधु या साध्वी पहले वस्त्र को देख कर याचना करे। गृहपति यावत् दास दासी आदि गृहस्थों से वह साधु पहले ही वस्त्रों को देख कर इस प्रकार कहे कि हे आयुष्मन् गृहस्थ! भाई! अथवा बहिन! क्या तुम मुझे इन
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