Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ४ उद्देशक २ ................••••••••••••••••••.....................
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई सद्दाइं सुणिजा तहावि एयाई णो एवं वइज्जा, तंजहा-सुसद्दे त्ति वा, दुसद्दे त्ति वा एयप्पगारं भासं सावजं णो भासिज्जा। ___ कठिन शब्दार्थ - सुसद्दे - सुशब्द, दुसद्दे - दुःशब्द । - भावार्थ - संयमशील साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्दों को सुन कर इनके संबंध में इस प्रकार न बोले कि - यह सुशब्द-बहुत अच्छा शब्द है, यह मंगलकारी है अथवा दुःशब्द सुनकर ऐसा न कहे कि यह बहुत बुरा शब्द है, यह अमंगलकारी है। इस प्रकार राग द्वेष के वश होकर सावध भाषा न बोले। __से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं सहाई सुणिजा तहावि ताई एवं वइज्जा तंजहा-सुसई सुसद्दे त्ति वा, दुसह दुसद्दे त्ति वा एयप्पगारं असावजं जाव भासिजा, एवं रूवाई किण्हे त्ति वा, णीले त्ति वा, लोहिए त्ति वा, हलिहे त्ति वा, सुक्किले त्ति वा, गंधाई सुब्भिगंधे त्ति वा दुब्भिगंधे त्ति वा, रसाइं तित्ताणि वा (तित्ते त्ति वा) कडुए त्ति वा, कसाए त्ति वा, आम्बिले त्ति वा, महुरे त्ति वा फासाइं कक्खडाणि वा (कक्खडे त्ति वा.) मउए त्ति वा, गुरुए त्ति वा, लहुए त्ति वा, सीए त्ति वा, उसिणे त्ति वा, णिद्धे त्ति वा, लुक्खे त्ति वा॥१३९॥ ___ भावार्थ - साधु या साध्वी उन शब्दों को सुन कर सुशब्द को सुशब्द और दुःशब्द को दुःशब्द ही कहे। इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात रहित भाषा बोले। इसी प्रकार रूपों के विषय में कृष्ण को कृष्ण यावत् श्वेत को श्वेत कहे। गंधों के विषय में सुगंध को सुगंध और दुर्गध को दुर्गन्ध कहे, रसादि के विषय में भी तिक्त को तिक्त यावत् मधुर को मधुर कहे। इसी प्रकार स्पर्शों के विषय में कर्कश को कर्कश यावत् उष्ण को उष्ण कहे अर्थात् जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही कहे। . .
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि कोई खास प्रयोजन उपस्थित होने पर साधु साध्वी को पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श के संबंध में कैसी भाषा का प्रयोग करना चाहिये। राग और द्वेष के वश होकर साधु साध्वी विपरीत भाषा नहीं
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