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अध्ययन ४ उद्देशक २ ++++++++000000000000000000rrrrrrr................... निर्णयात्मक ज्ञान करके बोलने वाला, णिसम्मभासी- निशम्यभाषी - अच्छी तरह सुनकर
और समझकर-विचार पूर्वक बोलने वाला, अतुरियभासी - अत्वरितभाषी - जल्दी-जल्दी या स्पष्ट शब्दों में न बोलने वाला। विवेगभासी - विवेकभासी - विवेक पूर्वक भाषी (जिस भाषा प्रयोग से कर्म आत्मा से पृथक् हो वैसा बोलने वाला), समियाए - भाषा समिति का ध्यान रख कर, संजए - संयत - परिमित शब्दों में।
__ भावार्थ - साधु या साध्वी क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग करने वाला, निष्ठाभाषी - एकान्त निरवद्य भाषा बोलने वाला, निशम्यभासी - अच्छी तरह सुनकर और समझ कर विचार पूर्वक बोलने वाला, अत्वरितभाषी - धीरे-धीरे बोलने वाला अर्थात् उतावला उतावला न बोलने वाला और विवेक पूर्वक बोलने वाला हो। साधु साध्वी भाषा समिति से युक्त संयत भाषा बोले।
यही साधु साध्वी का समग्र आचार है। इस प्रकार मैं कहता हूँ। अर्थात् - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से इस प्रकार कहते हैं कि हे आयुष्मन् जम्बू! जैसा मैंने श्रमण. भगवान् महावीर स्वामी से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ। अपनी बुद्धि से कुछ नहीं कहता हूँ।
- विवेचन - भाषा अध्ययन का उपसंहार करते हुए सूत्रकार फरमाते हैं कि विवेकशील एवं संयमनिष्ठ साधक को कषायों का त्याग करके सोच विचार पूर्वक निरवद्य, निष्पापकारी, मधुर प्रिय एवं यथार्थ भाषा का प्रयोग करना चाहिये।
॥चौथे अध्ययन का द्वितीय उद्देशक समाप्त॥
. ॐ भाषाजात नामक चौथा अध्ययन समाप्त ॐ
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