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वौषणा नामक पांचवां अध्ययन
प्रथम उद्देशक चौथे अध्ययन में भाषा समिति विषयक वर्णन के पश्चात् आगमकार इस पांचवें वस्त्रैषणा अध्ययन में साधु साध्वी को किस तरह से कैसे वस्त्र ग्रहण करने चाहिये, इसका वर्णन करते हैं। वस्त्र दो प्रकार का कहा गया है - १. द्रव्य वस्त्र और २. भाव वस्त्र। द्रव्य वस के तीन भेद हैं - १. एकेन्द्रिय जीवों के शरीर से निर्मित कपास, सण आदि के वस्त्र २. विकलेन्द्रिय जीवों के तारों (लारों) से बनाए गये रेशमी वस्त्र और ३. पंचेन्द्रिय जीवों के बालों से बनाए गए ऊन के कम्बल, वस्त्र आदि। ब्रह्मचर्य के अठारह हजार शीलांग गुणों को धारण करना भाव वस्त्र कहलाता है। प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्य वस्त्रों के विषय में ही कथन किया गया है।
इस अध्ययन के दो उद्देशक हैं - पहले उद्देशक में वस्त्र ग्रहण करने की विधि और . दूसरे उद्देशक में वस्त्र धारण करने का उल्लेख किया गया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा वत्थं एसित्तए, से जं पुण वत्थं जाणिज्जा तंजहा-जंगियं वा भंगियं वा साणियं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा तहप्पगारं वत्थं। जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारिजा, णो बिइयं, जा णिग्गंथी सा चत्तारि संघाडीओ धारिज्जा एगं दुहत्थ वित्थारं, दो तिहत्थ वित्थाराओ, एगं चउहत्थ वित्थारं तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिज्जमाणेहिं अह पच्छा एगमेगं संसीविजा॥१४१॥
कठिन शब्दार्थ - जंगियं - जांगमिक-जंगम-चलने फिरने वाले त्रस जीबों - पंचेन्द्रिय के बालों से बना हुआ, भंगिय - भांगिक-विकलेन्द्रिय जीवों की लार से बना हुआ, साणियं - साणिक-सण (तृण विशेष) आदि से, बना हुआ, पोत्तगं - पोतक-ताड पत्रों आदि से बना हुआ, खोमियं - क्षोमिक-कपास आदि से बना हुआ, तूलकडं - तूलकृतआक आदि की रुई से बना हुआ, जुगवं - युगवान्-तीसरे चौथे आरे का जन्मा हुआ अथवा समय के उपद्रव से रहित, अप्यायंके , अल्पांतक-रोग रहित, संघाडीओ - संघाटिका, असंधिज्जमाणेहिं - नहीं मिलने पर, संसीविज्जा - सी ले (सीवे)।
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