Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ४ उद्देशक १
१८५
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लिये तो शास्त्रकार ने भोई (भवती-आप) और भगवती सरीखे उच्च सम्बोधनों का प्रयोग किया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो एवं वइजा-णभो देवे त्ति वा, गज देवे त्ति वा विज्जु देवे त्ति वा, पवुटु देवे त्ति वा, णिवुटु देवे त्ति वा, पडउ वा वासं, मा वा पडउ, णिप्फज्जउ वा सस्सं, मा वा णिप्फज्जउ, विभाउ वा रयणी, मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए, मा वा उदेउ, सो वा राया जयउ, मा वा जयउ, णो एयप्पगारं भासं भासिज्जा पण्णवं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्खे त्ति वा गुज्झाणुचरिए त्ति वा, संमुच्छिए वा, णिवइए वा, पओए वइज्जा वुढ़वलाहगे
त्ति वा।
- एवं खलु तस्स भिक्खूस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वढेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि त्ति बेमि॥१३५॥ ..
पढमो उद्देसो समत्तो॥ - कठिन शब्दार्थ - णभो देवे - आकाश देव, गज देवे - गाज-बादलों की गर्जन देव, विजु देवे- विद्युत् देव, पवुड देवे - देव बरस गया,, णिवुटु देवे - देव निरन्तर बरस गया, वासं - वर्षा, मा - मंत, वा - अथवा, पडउ - गिरे-बरसे, सस्सं - धान्य, णिप्फज्जउउत्पन्न होवे, रयणी - रात्रि, विभाउ- शोभा युक्त - प्रकाश वाली होवे, सूरिए - सूर्य, उदेउ - उदय होवे, जयउ - विजयी होवे, पण्णवं - प्रज्ञावान्, अंतलिक्खे - अंतरिक्षआकाश, गुज्झाणुचरिए - यह आकाश देवताओं के चलने का मार्ग होने से गुह्यानुचरित है, णिवंइए - झुक रहा है, पओए - बादल-मेघ जल देने वाला है, वुढ़वलाहगे - बादल बरस चुका है।
भावार्थ - साधु या साध्वी इस प्रकार न कहे कि आकाश देव है, बादलों की गर्जन देव है, विद्युत बिजली देव है, देव बरसा या देव खूब बरस रहा है, वर्षा हो तो अच्छा या न हो तो अच्छा, धान्य उत्पन्न हो या नहीं हो, रात्रि प्रकाश युक्त हो या न हो, सूर्य उदय हो या न हो, वह राजा विजयी हो या न हो, इस प्रकार की भाषा न बोले।
बुद्धिमान् साधु या साध्वी प्रयोजन होने पर आकाश को अंतरिक्ष कहे, गुह्यानुचरित कहे। यह मेघ जल देने वाला है, यह उमड़ रहा है, यह मेघ बरसता है, या बरस रहा है ऐसा कहे। ..
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