Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
संयमशील साधु-साध्वी के लिए यह समग्र आचार है अतः ज्ञानादि से युक्त होकर यता पूर्वक सदैव उसके पालन में यत्नशील रहे ।
त्ति बेमि अर्थात् श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे आयुष्मन् शिष्य ! जिस प्रकार मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना था उसी प्रकार मैं तुम्हें कहता हूँ।
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विवेचन प्रस्तुत सूत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संयमनिष्ठ और विवेकशील साधु साध्वी को अयथार्थ एवं सदोष भाषा का प्रयोग नहीं करते हुए सदैव मधुर, प्रिय, यथार्थ एवं निर्दोष भाषा का ही प्रयोग करना चाहिये ।
।। चौथे अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
चौथे अध्ययन का दूसरा उद्देशक
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं रूवाइं पासिज्जा, तहावि ताई णो एवं वइज्जा तंजा - गंडीं गंडी इवा, कुट्ठीं कुट्ठी इ वा जाव महुमेहुणीं महुमेहुणी इवा, हत्थछिण्णं वा हत्थच्छिण्णे इ वा एवं पायच्छिण्णे इ वा णक्कछिणे इवा, कण्णछिण्णे इ वा उट्ठछिण्णे इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा एयप्पगाराहिं भासाहिं बुझ्या बुड़या कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगाराहिं भासाहिं अभिकख णो भासिज्जा ॥
कठिन शब्दार्थ - जहावि यद्यपि, तहावि - तथापि, गंडी गंड रोग वाला, कुट्ठी - कुष्ट रोग वाला, महुमेहुणी - मधुमेही, हत्थछिण्णे- छिन्न हस्त - जिसका हाथ कट गया हो, पायछिण्णे- पैर कटे हुए हो-पैर कटा, र्णक्कछिण्णे - नाक कटी होनकटा, कण्णछिण्णे - कर्ण छिन्न को कनकटा, उट्ठछिण्णे - ओठ कटा हुआ, बुइया सम्बोधित करने पर, कुप्पंति - क्रोधित होते हैं ।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें देख कर उसे उसी प्रकार संबोधित कर नहीं बुलावे जैसे- गंड रोग वाले को गंडी, कुष्ट रोग वाले को कोढ़ी यावत् मधुमेह के रोगी को मधुमेही, जिसका हाथ कटा हुआ हो उसे हथकटा,
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