Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• वा, पक्खिं वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा से तं परिवूढकायं पेहाए णो एवं वइजा - थूले इ वा, पमेइले इ वा, वट्टे इ वा, वझे इ वा, पाइमे इ वा, एयप्पगारं भासं सावजं जाव णो भासिज्जा॥ - कठिन शब्दार्थ - गोणं - वृषभ (बैल) को, महिसं - भैंसे को, मिगं - मृग (हिरण) को, पसु - पशु को, पक्खिं - पक्षी को, सरीसिवं - सर्प को, जलयरं - जलचर जीव को, परिवूढकायं - पुष्ट शरीर वाले को, थूले - स्थूल, पमेइले - गाढ़ी चर्बी (मेद). वाला, वट्टे - गोलाकार, वझे - वध्य-वध करने योग्य, पाइमे - पकाने योग्य।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी मनुष्य, बैल, भैंसे, मृग, पशु, पक्षी, जलचर जीवों को संर्प अथवा पुष्ट शरीर वाले प्राणी को देखकर इस प्रकार न कहे कि - यह स्थूल (मोटा) है, मेद (चर्बी) वाला है गोलाकार (गोल-मटोल) है, मारने योग्य है, पकाने योग्य है। इस प्रकार की सावध यावत् जीवघातक भाषा नहीं बोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा जाव जलयरं वा से तं परिवूढकायं पेहाए एवं वइजा-परिवूढकाए त्ति वा, उवचियकाए त्ति वा, थिर संघयणे त्ति वा, उवचिय मंससोणिए त्ति वा, बहुपडिपुण्ण-इंदिए त्ति वा एयप्पगारं भासं असावजं जाव भासिज्जा॥ __कठिन शब्दार्थ - उवचियकाए - उपचितकाय-बड़े शरीर वाला, थिर संघयणे - स्थिर संहनन वाला, उवचिय मंससोणिए - उपचित मांस और रुधिर वाला, बहुपडिपुण्णइंदिए - परिपूर्ण इन्द्रिय वाला।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी पुष्ट शरीर वाले मनुष्य यावत् जलचर प्राणी को देखकर प्रयोजन हो तो इस प्रकार कहे कि - यह पुष्ट शरीर वाला है, उपचितकाय है, दृढ़ संहनन वाला है या इसके शरीर में मांस और रुधिर अच्छा है और परिपूर्ण इन्द्रिय वाला है, ऐसी निरवद्य यावत् जीवोपघात रहित भाषा का प्रयोग करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूबाओ गाओ पेहाए णो एवं वइज्जा, तंजहा-गाओ दुज्झाओ त्ति वा, दम्मे त्ति वा, गोरह त्ति वा, वाहिम त्ति वा, रहजोग्ग त्ति वा, एयप्पगारं भासं सावजं जाव णो भासिज्जा॥
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