Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .0000000000000000000000000000000000000000000............
भावार्थ - साधु साध्वी भाषा के विषय में यह जान ले कि जो भाषा सत्या है, जो भाषा मृषा है, जो भाषा सत्यामृषा है अथवा जो भाषा असत्यामृषा है, इन चार भाषाओं में से भी पापकारी, अनर्थदंड में प्रवृत्ति कराने वाली, कर्कश, कटुक-चित्त को उद्वेग करने वाली, निष्ठुर, मर्म प्रकाशित करने वाली, आस्रवकारी, छेदकारी, भेदकारी, परिताप उत्पन्न करने वाली, उपद्रव करने वाली, प्राणियों का घात करने वाली इस प्रकार की किसी भी भाषा का प्रयोग न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा, जा य भासा सच्चा सुहुमा, जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं असावजं जाव अभूओवघाइयं अभिकंख भासं भासिज्जा॥१३३॥
कठिन शब्दार्थ - सुहुमा - सूक्ष्म बुद्धि से विचार करके।
भावार्थ - संयमशील साधु, साध्वी सूक्ष्म बुद्धि से विचार करके सत्य और व्यवहार भाषा-जो कि निरवद्य-पाप रहित यावत् प्राणियों का घात न करने वाली हों तो संयमशील. साधु साध्वी इन्हीं दोनों भाषाओं का विवेक पूर्वक प्रयोग करे। ... विवेचन - साधु साध्वी असत्य एवं मिश्र भाषा का प्रयोग नहीं करे और सत्य एवं व्यवहार भाषा भी जो सावध हो, सक्रिय हो, कर्कश हो, कठोर हो, कडवी हो, कर्म बंध कराने वाली हो, मर्म का उद्घाटन कराने वाली हो, ऐसी भाषा नहीं बोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणं णो एवं वइज्जा - होले त्ति वा, गोले त्ति वा, वसुले त्ति वा, कुपक्खे त्ति वा, घडदासे त्ति वा, साणे त्ति वा, तेणे त्ति वा, चारिए त्ति वा, माई त्ति वा, मुसावाइ त्ति वा, एयाइं तुमं ते जणगा वा एयप्पगारं भासं सावजं सकिरियं जाव भूओवघाइयं अभिकंख णो भासिज्जा॥ ___ कठिन शब्दार्थ - पुमं - पुरुष को, अपडिसुणेमाणं - नहीं सुनने वाले को, होले - अरे! होल, गोले- अरे! गोल, वसुले - अरे वृषल (चाण्डाल), कुपक्खे - कुपक्ष, घडदासेघट दास, साणे - कुत्ते, तेणे- चोर, चारिए - गुप्तचर, माई - कपटी (छली), मुसावाईमृषावादी-झूठा, तुम - तूं, एयाई- ऐसा है, जणगा - जनक-माता पिता।
भावार्थ - साधु या साध्वी किसी पुरुष को बुलाते समय अथवा बुलाए जाने पर भी
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