Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन २ उद्देशक ३
ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय पमज्जिय तओ संजयामेव बहुफासुए सेज्जा संथारगे दुरुहिज्जा दुरुहित्ता तओ संजयामेव बहुफासुए सिज्जा संथारए सएज्जा ॥ १०८ ॥
कठिन शब्दार्थ - ससीसोवरियं कायं पाए - मस्तक से पांवों तक सम्पूर्ण शरीर को । भावार्थ - साधु अथवा साध्वी प्रासुक शय्या पर सोते समय पहले ही सिर से लेकर पैरों तक सम्पूर्ण शरीर को पूंज कर फिर यतनापूर्वक शयन करे ।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुफासुए सिज्जा संथारए सयमाणे णो अण्णमण्णस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, कारण कार्य आसाइज्जा, से अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु- फासुए सिज्जा संथारए सज्जा ॥
कठिन शब्दार्थ - आसाइज्जा - संघट्टा (स्पर्श) करे या टकराए।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी प्रासुक शय्या पर शयन करता हुआ परस्पर एक दूसरे के हाथ से हाथ का, पैर से पैर का और शरीर से शरीर का स्पर्श नहीं करे, आशातना नहीं . करे । इस प्रकार आशातना न करते हुए यतना पूर्वक शयन करे।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमाणे वा, छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा, उड्डए वा, वायणिसग्गे वा करेमाणे पुव्वामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपेहित्ता तओ संजयामेव ऊससिज्जा वा जाव वायणिसग्गं वा करिज्जा ॥ १०९ ॥
कठिन शब्दार्थ - कासमाणे खांसता हुआ, आसयं मुंह को, पोसयं - मल द्वार को, परिपेहित्ता - ढक कर ।
भावार्थ - साधु या साध्वी उच्छ्वास अथवा निःश्वास लेते हुए खांसते हुए, छींकते हुए, उबासी लेते हुए, डकार लेते हुए अथवा अपान वायु छोडते समय पहले ही मुख या मल द्वार को ढंककर यतना पूर्वक उच्छ्वास निःश्वास ले यावत् अपानवायु छोडे ।
विवेचन - प्रश्न भाषा के पुद्गल चार स्पर्श वाले (शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध) होते हैं और वायुकाय के पुद्गल आठ स्पर्श वाले हैं फिर ये चार स्पर्श वाले भाषा के पुद्गल आठ स्पर्श वाले जीवों की हिंसा कैसे कर सकते हैं ?
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