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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध •••••••••••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrr................... पंचाहेण वा, पाउणिज वा णो पाउणिज वा, तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिजं सइ लाढे जाव णो विहारवत्तियाए पव्वजिज गमणाए। केवली बूया-आयाणमेयं। अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीएसु वा हरिएसु वा उदएसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा जाव ज तहप्पगारं अणेगाहगमणिजं जाव णो गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइजिज्जा गमणाए॥११७॥
कठिन शब्दार्थ - विहं - अटवी, एगाहेण - एक दिन में, पाउणिज - पार की (उल्लंघी) जा सकती है, अणेगाहगमणिज्जं - अनेक दिनों में पार की जाने वाली।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ मार्ग में आने वाली अटवी के विषय में यह जाने कि यह एक दिन में, दो दिन में, तीन दिन में, चार दिन में अथवा पांच दिन में पार की जा सकती है या नहीं? यदि अन्य मार्ग हो तो साधु-साध्वी इस प्रकार अनेक दिनों में उल्लंघी जा सकने वाली अटवी को लांघ कर जाने का विचार न करे। केवली भगवान् ने ऐसे मार्गों से जाने को कर्म बंध का कारण कहा है। क्योंकि ऐसे लम्बे मार्गों को पार करते कदाचित् वर्षा आ जाय तो मार्ग में बेइन्द्रियादि जीव जंतुओं के उत्पन्न हो जाने और लीलन फूलन बीज हरित वनस्पति सचित्त जल मिट्टी आदि की उत्पत्ति होने से संयम की विराधना संभव है। अतः साधु साध्वी ऐसी अटवी में (जो अनेक दिनों में पार की जा सके) जाने का संकल्प न करे, किन्तु यतना पूर्वक अन्य सरल मार्ग से ग्रामानुग्राम विचरे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से णावासंतारिमे उदए सिया, से जं पुण णावं जाणिज्जा असंजए भिक्खुपडियाए किणिज्ज वा पामिच्चिज वा, णावाए वा णावं परिणाम कट्ट, थलाओ वा णावं जलंसि
ओगाहिज्जा, जलाओ वा णावं थलंसि उक्कसिज्जा, पुण्णं वा णावं उस्सिंचिज्जा, सण्णं वा णावं उप्पीलाविजा, तहप्पगारं णावं उड्ढगामिणिं वा, अहोगामिणिं वा तिरियगामिणिं वा परं जोयणमेराए अद्धजोयणमेराए अप्पतरे वा भुजतरे वा णो दुरुहिजा गमणाए॥
कठिन शब्दार्थ - णावासंतारिमे - नौका से पार करने योग्य, उदए सिया - पानी
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