Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ उद्देशक २
१५९ •••••••••••••••••••••••••••••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrr... ___भावार्थ - साधु या साध्वी नौका में छिद्र के द्वारा जल भरता हुआ देखकर और पानी से नाव को हिलती-डुलती देखकर किसी अन्य को इस प्रकार न कहे कि हे आयुष्मन् ! इस नौका के छेद में से पानी आ रहा है नौका जल से भर रही है और स्वयं के मन में भी किसी प्रकार का संकल्प-विकल्प न होने दे, किन्तु अपने शरीर एवं उपकरणादि पर मूर्छा न करता हुआ, संयम में मनोवृत्ति रखकर आत्मस्वरूप में रमण करता हुआ, मोह का त्याग करके आत्म समाधि में लीन रहे। नौका के द्वारा तैरने योग्य जल को पार करने के लिये जिस प्रकार से ईर्या समिति का पालन हो सके, उसी प्रकार विचरे (चले)।
यही साधु-साध्वियों का समग्र आचार है। साधु-साध्वी ज्ञानादि से युक्त होकर सदैव यतना पूर्वक इसका पालन करे।
विवेचन - साधु साध्वी छह काय के संरक्षक हैं। यदि वह नाव को खींचने, बांधने एवं चलाने आदि का प्रयत्न करेगा तो उसमें अनेक त्रस एवं स्थावरकायिक जीवों की हिंसा होगी अतः साधुत्व की उत्कृष्ट साधना को लक्ष्य में रख कर यह आदेश दिया गया है कि वह मृत्यु का प्रसंग उपस्थित होने पर भी नाव में होने वाली किसी तरह की सावध प्रवृत्ति में भाग नहीं ले परन्तु मौन भाव से आत्म-चिंतन में लगा रहे।
. ॥ तृतीय अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
..... तृतीय अध्ययन का द्वितीय उद्देशक
से परो णावागओ णावागयं वइज्जा-आउसंतो समणा ! एयं ता तुमं छत्तगं वा जाव चम्मछयणगं वा गिण्हाहि, एयाणि तुमं विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि। एयं ता तुमं दारगंवा पज्जेहि, णो से तं परिण्णं परिजाणिज्जा, तुसिणीओ उवेहिज्जा॥१२०॥
कठिन शब्दार्थ - छत्तगं - छत्र, चम्मछेयणगं - चमड़ा काटने के शस्त्र विशेष को, गिहाहि - ग्रहण करो, सत्थजायाणि - शस्त्रों के सम्मुख हो, धारेहि - धारण करो, दारगं - बालक को, पज्जेहि- पिला दो।
भावार्थ - नौका पर सवार साधु साध्वी को नावारूढ़ अन्य व्यक्ति इस प्रकार कहे कि - हे आयुष्मन् श्रमण! तुम इस छत्र को यावत् चर्म छेदन के औजार विशेष को पकड़ो
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