Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ..........................................................
भावार्थ - साधु या साध्वी जंघा परिमाण पानी में से पार होते हुए शरीर को ठंडक पहुँचाने के लिए, आनंद के लिए, गर्मी (दाह) को शांत करने के लिए गहरे पानी में प्रवेश नहीं करे, यतना पूर्वक जंघा-परिमाण जल में ही चले। जब ऐसा जाने कि-किनारे पहुँच गया है तो यतनापूर्वक पानी से भीगे शरीर से किनारे पर ही खड़ा रहे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा कार्य ससिणिद्धं वा कायं णो आमज्जिज्ज वा, पमज्जिज्ज वा अह पुण एवं जाणिज्जा विगओदए काए छिण्णसिणेहे तहप्पगारं कायं आमजिज वा जाव पयाविज वा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥१२४॥ ___ भावार्थ - साधु या साध्वी पानी से भीगे अपने शरीर को पौंछे नहीं, सूखावे नहीं और प्रमार्जित नहीं करे परन्तु जब शरीर पूर्णतया सूख जाय तो (पानी से रहित हो जाय तो) शरीर को मले, साफ करे प्रमार्जित करे, धूप में तपाये और तत्पश्चात् यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरे।
_ विवेचन - यदि विहार करते समय रास्ते में नदी आ जाय और उसमें जंघा (घुटने) परिमाण पानी हो और दूसरा स्थल मार्ग न हो तो साधु साध्वी उसे पार कर जा सकते हैं। चलने की विधि बतलाये हुए शास्त्रकार ने शब्द दिया है "एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा" इसका अर्थ है एक पैर जल में और एक पैर स्थल में रख कर चले। आशय यह है कि चलते समय एक पैर जल में रहे और दूसरे पैर को पानी के ऊपर के आकाश प्रदेशों तक उठा ले. उसको यहां पर स्थल कहा है। इस प्रकार पानी में चले किन्त भैंसे की तरह पानी को रोंदता हुआ न चले। पानी में चलते समय यह विचार भी न करे कि अब मैं पानी में उतर ही गया हूँ तो कुछ गहराई में डुबकी लगा कर शरीर के दाह को शान्त कर लूँ। उसे चाहिए कि वह अपने हाथ और पैरों को भी परस्पर स्पर्श न करता हुआ अप्कायिक जीवों को विशेष पीड़ा न पहुँचाता हुआ नदी को पार करे।
- इस प्रकार नदी को पार कर किनारे पर पहुँचने के पश्चात् जब तक शरीर और वस्त्रों से पानी टपकता रहे या वे गीले हों तब तक वहीं किनारे पर खड़ा रहे। उस समय वह अपने हाथ से शरीर का स्पर्श भी नहीं करे और न ही वस्त्रों को निचोड़े। इस प्रकार शरीर और वस्त्रों के सूख जाने के बाद अपने शरीर की प्रतिलेखना कर विहार करे अर्थात् लगी हुई मिट्टी आदि तथा सूखा हुआ कीचड़ दूर करे।
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