Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१६६
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .0000000000000000000000000000rrrrrrrrrrrr.00000000000000.
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु साध्वी के मार्ग में वप्र (खेत) अथवा क्यारियाँ, खाइयाँ, कोट किला, नगर का मुख्य द्वार आगल या आगल दिये जाने वाले स्थान (अर्गला पाश) खड्डे (गड्ढे) गुफाएँ आती हों और अन्य सरल मार्ग दूसरा हो तो उस सरल मार्ग से जावे किन्तु जो सीधा मार्ग है किन्तु विषम है उस मार्ग से न जावे। क्योंकि उस विषम मार्ग से जाने पर साधु साध्वी का पैर फिसल सकता है, वह गिर भी सकता है जिससे शरीर के किसी अंग उपांग को चोट लग सकती है तथा वहाँ रहे हुए त्रस और स्थावर जीव की विराधना भी हो सकती है अतः ऐसे विषम मार्ग से न जावे। क्योंकि वहाँ जाते हुए यदि पैर फिसलने लगे या गिरने लगे तो उस मार्ग में रहे हुए वृक्ष, गुच्छ (पत्तों का समूह या फलों का गुच्छा) झाड़ी, लता (यष्टी के आकार वाली बेले), सीधी बेलें, तृण, गहन (वृक्षों के कोटर-खोखाल या वृक्ष लताओं का झुण्ड) आदि हरितकाय . का सहारा लेने का प्रसङ्ग आयेगा तथा जो पथिक सामने आ रहे हैं उनके हाथ का सहारा मांगने का प्रसङ्ग आयेगा, ये सब क्रियाएँ दोष युक्त हैं संयम विराधना और आत्म-विराधना का कारण है इसलिए ऐसे विषम मार्ग से नहीं जाना चाहिए किन्तु यतना पूर्वक (संयम पूर्वक) सममार्ग से ही ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए। वनस्पति को पकड़ना और गृहस्थ का हाथ पकड़ कर उसका सहारा लेकर विषम मार्ग को पार करना ये सब क्रियाएँ साध्वाचार के विरुद्ध है। अतः साधु-साध्वी को ऐसा नहीं करना चाहिए। विषम मार्ग में जाने से इस प्रकार की सावध क्रिया करने का प्रसङ्ग आ सकता है। इसलिए विषम मार्ग से जाने का शास्त्रकार ने निषेध किया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा, सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, परचक्काणि वा से णं वा विरूवरूवं संणिविटुं पेहाए सइ परक्कमे संजयामेव णो उज्जुयं गच्छिज्जा॥ ___कठिन शब्दार्थ - जवसाणि - गेहूँ जौ आदि धान्य, सगडाणि - गाडियाँ, रहाणि - रथ, सचक्काणि - स्वचक्र-स्वकीय राज सेना, परचक्काणि - पर चक्र-अन्य राजा की सेना का पड़ाव।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी ग्रामानुग्राम विचरते हुए मार्ग में गेहूँ आदि धान्य, गाडियाँ, रथ, स्वचक्र-स्वकीय राज सेना तथा परचक्र-अन्य राजा की सेना का पड़ाव आदि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org